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Showing posts from September, 2016

Emblem of Iran and Sikh Khanda

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ईरानी प्रतीक चिह्न और सिखों के खंडे में क्या है अंतर पहली नजर में देखने पर सिखों के धार्मिक झंडे निशान साहिब में बने खंडे के प्रतीक चिह्न और इरान के झंडे में बने निशान-ए-मिली के प्रतीक चिह्न में काफी सम्मानता नजर आती हैं परन्तु इनमें कुछ मूलभूत अन्तर हैं जैसे कि :   Colour : खंडे के प्रतीक चिह्न का आधिकारिक रंग नीला है वहीं ईरानी प्रतीक चिह्न लाल रंग में नज़र आता है। Established Year : खंडे के वर्तमान प्रतीक चिह्न को सिखों के धार्मिक झंडे में अनुमानतन 1920 से 1930 के दरमियान, शामिल किया गया था। वहीं निशान-ए-मिली के प्रतीक चिह्न को ईरान के झंडे में 1980 की ईरानी क्रांति के बाद शामिल किया गया था। Exact Date : इस ईरानी प्रतीक चिह्न को हामिद नादिमी ने डिज़ाइन किया था और इसे आधिकारिक तौर पर 9 मई 1980 को ईरान के पहले सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला खुमैनी जी ने मंजूरी के बाद ईरानी झंडे में शामिल किया गया। वहीं सिखों के झंडे का यह वर्तमान प्रतीक चिह्न विगत वर्षो के कई सुधारों का स्वरूप चिह्न है इसलिए इसके निर्माणकार और निर्माण की तिथि के बारे में सटीक जानकारी दे पाना बहुत जटिल बात है, ...

पाखंड

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                                                             डेरा वाद और पाखंडी पंडित पुरातन समय से ही किसी गुरू का हमारे जीवन और भारतीय संस्कृति में बहुत बड़ा महत्व रहा है क्योंकि सच्चा गुरु हमें सदैव हमेंं केेेवल और केवल सत्य का मार्ग दिखलाता है जिस पर चल कर हमारा ना केवल हमारा कल्याण हो सकता है बल्कि हमें परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है या हमें मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है सच्चा गुरु हमें तमाम समाजिक बुराइयों से बचने का उपदेश भी देता है।  इससे पहले कि आप लोगों की भावनाएं आहत हो में आप लोगों और आपके श्रद्धा भाव से माफी मांग लेना उचित समझता हूँ और यह नैतिकता की दृष्टि से भी जरूरी है मुझे संन्यास ले कर तपोवन में तपस्या करने वाले महात्माओ से कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि वह सत्य को जान चुके हैं उनका मूल उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति और संसार के समस्त जीवों का कल्याण करना है। यदि में अंहकार वश उनका अनादर करूँ तो मुझ से बड़ा मूर्ख ...

भारत की शिक्षा व्यवस्था

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                  भारत की शिक्षा व्यवस्था शिक्षा का मकसद होता है इंसान को किसी काबिल बनाना ताकि वह अपने पैरों पर खड़ा होकर एक आदर्श नागरिक बन सके जिससे वह अपना और समाज का भला कर सकता है  इससे उसके मुल्क का भला होना स्वाभाविक बात है। विद्या के विषय में चाणक्य जी का मत है कामधेनुगुणा विद्या ह्ययकाले फलदायिनी। प्रवासे मातृसदृशा विद्या गुप्तं धनं स्मृतम्॥ अर्थात: विद्या कामधेनु गाय के समान है, जो बुरे समय में भी साथ देनेवाली है, प्रवास काल में माँ के समान रक्षा करती है। यह एक प्रकार का गुप्त धन है जिसे कोई भी चुरा नहीं सकता। परन्तु यहां तक आज के भारत की शिक्षा व्यवस्था का प्रश्न है तो इसके हालात बहुत नाज़ुक है वर्तमान समय भारत में शिक्षा एक व्यापार बन चुकी है शिक्षा का अधिकार केवल पैसे वालों तक ही सीमित होता जा रहा है कैसे ? वर्तमान समय में प्रत्येक अभिभावक की यह आशा रहती है के उनके बच्चे अच्छी से  अच्छी शिक्षा प्राप्त कर गसक इसके लिए वह उनकी पड़ाई के लिए बैंकों से कर्ज़ लेने में भी गुरैज नहीं करते यह तो मंहगी पड़ाई की ए...