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Showing posts from July, 2019

Emblem of Iran and Sikh Khanda

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ईरानी प्रतीक चिह्न और सिखों के खंडे में क्या है अंतर पहली नजर में देखने पर सिखों के धार्मिक झंडे निशान साहिब में बने खंडे के प्रतीक चिह्न और इरान के झंडे में बने निशान-ए-मिली के प्रतीक चिह्न में काफी सम्मानता नजर आती हैं परन्तु इनमें कुछ मूलभूत अन्तर हैं जैसे कि :   Colour : खंडे के प्रतीक चिह्न का आधिकारिक रंग नीला है वहीं ईरानी प्रतीक चिह्न लाल रंग में नज़र आता है। Established Year : खंडे के वर्तमान प्रतीक चिह्न को सिखों के धार्मिक झंडे में अनुमानतन 1920 से 1930 के दरमियान, शामिल किया गया था। वहीं निशान-ए-मिली के प्रतीक चिह्न को ईरान के झंडे में 1980 की ईरानी क्रांति के बाद शामिल किया गया था। Exact Date : इस ईरानी प्रतीक चिह्न को हामिद नादिमी ने डिज़ाइन किया था और इसे आधिकारिक तौर पर 9 मई 1980 को ईरान के पहले सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला खुमैनी जी ने मंजूरी के बाद ईरानी झंडे में शामिल किया गया। वहीं सिखों के झंडे का यह वर्तमान प्रतीक चिह्न विगत वर्षो के कई सुधारों का स्वरूप चिह्न है इसलिए इसके निर्माणकार और निर्माण की तिथि के बारे में सटीक जानकारी दे पाना बहुत जटिल बात है, ...

शिक्षा का अधिकार या मजाक

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शिक्षा का अधिकार या मजाक   गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥ गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥ रौनक रोज की तरह स्कूल ना जाने की जिद्द पर अड़ा था और उसकी माँ बिमला उसे पीट पीट कर स्कूल छोड़ने की जिद्द पर अड़ी थी दोनों का चीख चीहाड़ा अब पड़ोसियों के लिए भी रोज सुबह का सिरदर्द बनता जा रहा था। पड़ोसी शर्मा जी रौनक को बचपन से जानते थे वह पढ़ाई में बचपन से ही काफी होशियार था फिर अचानक यह इतना बिगड़ कैसे गया छठी में फेल भी हो गया उन्होंने ने मन ही मन अंदाजा लगाया कि यह सब बुरी संगत का नतीजा होगा।                         जब एक दिन बिमला ने रौनक को जमकर पीटा और तब भी रौनक स्कूल ना जाने कि जिद्द पर अड़ा रहा तो पोस्ट आफिस में काम करने वाले शर्मा जी से रहा नहीं गया उन्होंने रौनक को प्यार से अपने पास बुलाया और पूछा रौनक क्या बात है तुम स्कूल क्यों नहीं जाते उसने कहा मुझे वहां अच्छा नहीं लगता शर्मा जी ने फिर पूछा क्यों तो वह बोला स्कूल के मास्टर बहुत म...

कलयुगी बेटा

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                              कलयुगी बेटा                                                                          एक बहुत ही सभ्य और सम्पन्न परिवार था समाज में उनका बहुत मान सम्मान था वे दम्पत्ति बहुत ही सीधे सादे व नेक स्वभाव के थे सत्संगी होने के कारण लोग उनकी बहुत इज्जत करते थे। दम्पत्ति का एक ही लड़का था जिसकी शादी वह बड़ी धूम धाम से करते हैं लड़की वालों से कोई दहेज तक नहीं लेते लड़के की शादी को छह माह का समय ही बीतता है कि माता पिता को एहसास होने लगता है कि उनके बेटे के स्वभाव में काफी परिवर्तन आ गया है। कुछ समय बाद अचानक उस लड़के की माता जी का देहांत हो जाता है। पत्नी की मृत्यु के बाद उसके पिता जी भी काफी उदास रहने लगते हैं। एक दिन अचानक लड़का अपने पिता जी से कहता है कि पापा आप गैरेज में शिफ्ट हो जाओ क्योंकि आपकी वजह से आपक...