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Showing posts from August, 2019

Emblem of Iran and Sikh Khanda

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ईरानी प्रतीक चिह्न और सिखों के खंडे में क्या है अंतर पहली नजर में देखने पर सिखों के धार्मिक झंडे निशान साहिब में बने खंडे के प्रतीक चिह्न और इरान के झंडे में बने निशान-ए-मिली के प्रतीक चिह्न में काफी सम्मानता नजर आती हैं परन्तु इनमें कुछ मूलभूत अन्तर हैं जैसे कि :   Colour : खंडे के प्रतीक चिह्न का आधिकारिक रंग नीला है वहीं ईरानी प्रतीक चिह्न लाल रंग में नज़र आता है। Established Year : खंडे के वर्तमान प्रतीक चिह्न को सिखों के धार्मिक झंडे में अनुमानतन 1920 से 1930 के दरमियान, शामिल किया गया था। वहीं निशान-ए-मिली के प्रतीक चिह्न को ईरान के झंडे में 1980 की ईरानी क्रांति के बाद शामिल किया गया था। Exact Date : इस ईरानी प्रतीक चिह्न को हामिद नादिमी ने डिज़ाइन किया था और इसे आधिकारिक तौर पर 9 मई 1980 को ईरान के पहले सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला खुमैनी जी ने मंजूरी के बाद ईरानी झंडे में शामिल किया गया। वहीं सिखों के झंडे का यह वर्तमान प्रतीक चिह्न विगत वर्षो के कई सुधारों का स्वरूप चिह्न है इसलिए इसके निर्माणकार और निर्माण की तिथि के बारे में सटीक जानकारी दे पाना बहुत जटिल बात है, ...

कर्ण

               अर्जुन का अभिमान भंग महाभारत के युद्ध में अर्जुन और कर्ण के बीच घमासान युद्ध  चल रहा था अर्जुन का तीर लगने पे कर्ण का रथ 25-30 हाथ पीछे खिसक जाता और कर्ण के तीर से अर्जुन का रथ मात्र  सिर्फ 2-3 हाथ हि खिसकता। इससे अर्जुन को अपने बाहुबल पर अभिमान होने लगा और वह कहने लगा देखा प्रभु मेरे प्रहारो को लेकिन श्री कृष्ण थे की कर्ण के प्रहारो पर वाह कर्ण वाह कर्ण बहुत अच्छे कहकर उसकी तारीफ किए जा रहे थे जबकि अर्जुन की तारीफ़ में कुछ ना कहते। इस से अर्जुन बड़ा व्यथित हुआ, उसने पूछा , हे पार्थ आप मेरे शक्तिशाली प्रहारों की बजाय उसके कमजोर प्रहारों की तारीफ़ कर रहे हैं, ऐसा क्या कौशल है उसमे। श्री कृष्ण मुस्कुराये और बोले, इसका जवाब में तुम्हें युद्ध समाप्त होने के बाद दूंगा अभी तुम केवल और केवल युद्ध पर ध्यान दो बस युद्ध समाप्त होने के बाद श्री कृष्ण ने अर्जुन को पहले उतरने को कहा और बाद में स्वयं उतरे जैसे ही श्री कृष्ण रथ से उतरे रथ स्वतः ही भस्म हो गया यह देख अर्जुन हैरान रह गया श्री कृष्ण अर्जुन की तरफ देख कर मुस्कुराये और ब...

Hemkunt Sahib ki ghatna

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             श्री हेमकुंड साहिब जी की अनोखी घटना यह घटना वर्ष 1971 के आसपास की है पंजाब  के कपूरथला के एक गुरूद्वारे की संगत ने श्री हेमकुंड साहिब जानें कि  योजना बनाई इस यात्रा में  सरदार जीतेन्दर सिंह  के माता पिता जी का भी शामिल होने को बहुत मन हुुआ और वह भी इस यात्रा में जाने के लिए पूरे श्रद्धा भाव से तैयार हो गए पर उनके बेटेे जीतेन्दर सिंह को किसी काम के चलते घर पर ही  रुकना पड़ा। यात्रा के दौरान बुजुर्ग माता पिता को पुत्र की कमी बहुत खल रही थी क्योंकि श्री हेमकुंड साहिब जी की चड़ाई उनके दम खम का पूरा इम्तिहान ले रही थी वह अपनी साथी संगत से कहीं पीछे छूट गए थे उनका शरीर बहुत थक चुका था। तभी चड़ाई के दौरान उनकी मुलाकात सुरेन्द्र सिंह नामक युवक से हुई जिसने पुरी शिद्दत से यात्रा के दौरान बुजुर्गों की सेवा की उसने सारे रस्ते उनका समान उठाया उन्हें गुरूद्वारे में उनकी साथी संगत से मिलाया एक तरह से उसने उन्हें  बेटे की कमी महसूस नहीं होने दी यात्रा के दौरान उसने बुजुर्ग दम्पति को बताया की वह मुंबई का रहने वाल...