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Showing posts from September, 2019

Emblem of Iran and Sikh Khanda

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ईरानी प्रतीक चिह्न और सिखों के खंडे में क्या है अंतर पहली नजर में देखने पर सिखों के धार्मिक झंडे निशान साहिब में बने खंडे के प्रतीक चिह्न और इरान के झंडे में बने निशान-ए-मिली के प्रतीक चिह्न में काफी सम्मानता नजर आती हैं परन्तु इनमें कुछ मूलभूत अन्तर हैं जैसे कि :   Colour : खंडे के प्रतीक चिह्न का आधिकारिक रंग नीला है वहीं ईरानी प्रतीक चिह्न लाल रंग में नज़र आता है। Established Year : खंडे के वर्तमान प्रतीक चिह्न को सिखों के धार्मिक झंडे में अनुमानतन 1920 से 1930 के दरमियान, शामिल किया गया था। वहीं निशान-ए-मिली के प्रतीक चिह्न को ईरान के झंडे में 1980 की ईरानी क्रांति के बाद शामिल किया गया था। Exact Date : इस ईरानी प्रतीक चिह्न को हामिद नादिमी ने डिज़ाइन किया था और इसे आधिकारिक तौर पर 9 मई 1980 को ईरान के पहले सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला खुमैनी जी ने मंजूरी के बाद ईरानी झंडे में शामिल किया गया। वहीं सिखों के झंडे का यह वर्तमान प्रतीक चिह्न विगत वर्षो के कई सुधारों का स्वरूप चिह्न है इसलिए इसके निर्माणकार और निर्माण की तिथि के बारे में सटीक जानकारी दे पाना बहुत जटिल बात है, ...

मंदिर की सीढ़ी

              मंदिर की पौड़ी बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पौड़ी या सीढ़ी पर थोड़ी देर अवश्य बैठे । क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है ? आईए जानते हैं आजकल तो हम लोग मंदिर की पौड़ी पर बैठकर अपने घर की व्यापार की या राजनीति की चर्चा करते हैं परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई थी। वास्तव में उस समय मंदिर की पौड़ी पर बैठ कर के एक श्लोक बोला जाता  था जिसे आजकल के हम लोग भूल गए हैं। यह श्लोक इस प्रकार से है -           अनायासेन    मरणम्                   बिना  दैन्येन जीवनम् ।          देहान्त तव सानिध्यम्                   देहि   मे     परमेश्वरम् ।। इस श्लोक का अर्थ है अनायासेन मरणम् अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर ना पड़...

सेवा भावना

                                सेवा भावना  बात उन दिनों  कि है जब दास नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर सचखंड एक्सप्रेस में लंगर बाँटने की सेवा किया करता था एक दिन पीछे के जरनल डिब्बों में लंगर बाँटने के लिए परशादों वाले कैरेट अभी रखे हि थे कि गाड़ी प्लेटफार्म पर आ पहुंची तभी एक सहजधारी हिन्दू बुजुर्ग जल्दी से मेरे पास आ गए मैने जल्दबाजी में कहा बाबा जी आप परशादे वाले कैरेट के पास बैठ कर ध्यान रखना कोई बेअदबी ना करे में अभी दूसरे कैरेट से पीछे वाले डिब्बे में में परशादा बांट कर आता हूँ यह कह कर दास पीछे चला गया इत्तेफाक से उस दिन गाड़ी जल्दी चल पड़ी और दास उस दूसरे कैरेट तक नहीं पहुंच सका यहां वो बुजुर्ग बैठे थे। परन्तु जब दास पीछे से उस कैरेट को उठाने पहुंचा तो वह बुजुर्ग वहीं परशादे वाले कैरेट के पास बैठे थे मैने उनसे कहाँ लो बाबा जी अब आप भी परशादा शक लो बुजुर्ग ने कहा वो तो ठीक है पर मेरी गाड़ी छुट गई मैने बिआस जाना था दास चुप सा हो गया मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था तब बुजुर्ग ने मुझे बताय कि वह लंगर ...

कर्ण का अंतिम संस्कार

                                     कर्ण का अंतिम संस्कार   महाभारत के युद्ध में जब कर्ण को अर्जुन ने मृत्युशय्या पर लिटा दिया तो श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को महात्मा का भेस धारण करके आने को कहा और वह दोनो महात्मा के भेस में कर्ण के समीप पहुंचे श्री कृष्ण यह भलि भांति जानते थे कि कर्ण एक महान दानवीर है परन्तु वह अर्जुन को उसकी महानता से अवगत करवाना चाहते थे इस लिए उन्होंने अर्जुन के सामने कर्ण की दानवीरता की परीक्षा लेना चाही। श्री कृष्ण ने मृत्युशय्या पर लेटे हुए कर्ण से भिक्षा मांगी तो कर्ण ने कहा हे महात्माओ मेरे प्राण पंखेरू उड़ रहें हैं मेरी स्थिति दयनीय है ऐसी अवस्था में मेरे पास आप को देने के लिए कुछ नहीं है तब श्री कृष्ण ने कहा हम तो तुम्हारा बहुत नाम सुनकर तुम्हारे पास आए थे वत्स पर अवसोस हमें लगता है कि हमें यहां से खाली हाथ ही जाना पड़ेगा। तब कर्ण ने कहा तनिक रूकिए महात्मा उसने अपनी कटार से अपने सोने के दांत को निकालकर महात्मा की तरफ कर दिया तब श्री कृष्ण बोले वत्स महात्मा ...