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Showing posts from January, 2020

Emblem of Iran and Sikh Khanda

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ईरानी प्रतीक चिह्न और सिखों के खंडे में क्या है अंतर पहली नजर में देखने पर सिखों के धार्मिक झंडे निशान साहिब में बने खंडे के प्रतीक चिह्न और इरान के झंडे में बने निशान-ए-मिली के प्रतीक चिह्न में काफी सम्मानता नजर आती हैं परन्तु इनमें कुछ मूलभूत अन्तर हैं जैसे कि :   Colour : खंडे के प्रतीक चिह्न का आधिकारिक रंग नीला है वहीं ईरानी प्रतीक चिह्न लाल रंग में नज़र आता है। Established Year : खंडे के वर्तमान प्रतीक चिह्न को सिखों के धार्मिक झंडे में अनुमानतन 1920 से 1930 के दरमियान, शामिल किया गया था। वहीं निशान-ए-मिली के प्रतीक चिह्न को ईरान के झंडे में 1980 की ईरानी क्रांति के बाद शामिल किया गया था। Exact Date : इस ईरानी प्रतीक चिह्न को हामिद नादिमी ने डिज़ाइन किया था और इसे आधिकारिक तौर पर 9 मई 1980 को ईरान के पहले सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला खुमैनी जी ने मंजूरी के बाद ईरानी झंडे में शामिल किया गया। वहीं सिखों के झंडे का यह वर्तमान प्रतीक चिह्न विगत वर्षो के कई सुधारों का स्वरूप चिह्न है इसलिए इसके निर्माणकार और निर्माण की तिथि के बारे में सटीक जानकारी दे पाना बहुत जटिल बात है, ...

गुलाम भारत

                              गुलाम भारत  1757 में प्लासी के युद्ध में रॉबर्ट क्लाईव के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को पराजित कर दिया इसके साथ ही भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन स्थापित हो गया। उस समय की भारत की राजनीतिक परिस्थितियों पर रॉबर्ट क्लाईव ने अपनी डायरी में एक नोट लिखा था जो कि कुछ इस प्रकार से था। प्लासी का युद्ध जीतने के बाद जब हमने शक्ति प्रदर्शन के लिए भारत में विजय जुलूस निकाला तो विभिन्न धर्मों जातियों एवं दलों में बटे हुए भारत के मुर्ख लोग हमारा तालियों से स्वागत कर रहे थे में यह देख कर में बेहद हैरान था कि वह लोग अपने हि राजा के हारने पर बहुत खुश थे। जबकि इसके विपरीत यदि वहां मौजूद तमाम लोग बजाय तालियाँ मारने के यदि एक साथ मिलकर एक एक पत्थर भी हम पर मारते तो हम 3000 अंग्रेजो को जान के लाले पढ़ जाते और भारत कभी गुलाम नहीं होता। निष्कर्ष : आज भी भारत की राजनीति परिस्थितियों में कुछ खास बदलाव नहीं आया है आप क्या सोचते हैं ?