Emblem of Iran and Sikh Khanda

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ईरानी प्रतीक चिह्न और सिखों के खंडे में क्या है अंतर पहली नजर में देखने पर सिखों के धार्मिक झंडे निशान साहिब में बने खंडे के प्रतीक चिह्न और इरान के झंडे में बने निशान-ए-मिली के प्रतीक चिह्न में काफी सम्मानता नजर आती हैं परन्तु इनमें कुछ मूलभूत अन्तर हैं जैसे कि :   Colour : खंडे के प्रतीक चिह्न का आधिकारिक रंग नीला है वहीं ईरानी प्रतीक चिह्न लाल रंग में नज़र आता है। Established Year : खंडे के वर्तमान प्रतीक चिह्न को सिखों के धार्मिक झंडे में अनुमानतन 1920 से 1930 के दरमियान, शामिल किया गया था। वहीं निशान-ए-मिली के प्रतीक चिह्न को ईरान के झंडे में 1980 की ईरानी क्रांति के बाद शामिल किया गया था। Exact Date : इस ईरानी प्रतीक चिह्न को हामिद नादिमी ने डिज़ाइन किया था और इसे आधिकारिक तौर पर 9 मई 1980 को ईरान के पहले सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला खुमैनी जी ने मंजूरी के बाद ईरानी झंडे में शामिल किया गया। वहीं सिखों के झंडे का यह वर्तमान प्रतीक चिह्न विगत वर्षो के कई सुधारों का स्वरूप चिह्न है इसलिए इसके निर्माणकार और निर्माण की तिथि के बारे में सटीक जानकारी दे पाना बहुत जटिल बात है, ...

आजादी के 71 साल


हमारा स्वतंत्रता दिवस आने वाला है हमारे मुल्क को आजाद हुए 71 वर्ष हो जाएंगे। इन 71 सालों में आज हम कहाँ है आइए जरा इंडिया भारत और हिंदूस्तान के नजरिए से समझने का प्रयास करते हैं।

इन 71 सालों में इंडिया ने उच्च वर्ग के समान खुब तरक्की की कोमन वेल्थ गेम भी हुए चंद्रयान भी भेजे गए और कई घोटाले भी हुए आई पी एल में विदेशी खिलाड़ियों पर ऊंची बोलियां भी लगी पैसा पानी की तरह बहाया गया।
कई सज्जन बैंको और देश को करोड़ों का चूना लगा विदेशों में सैट भी हो गए और हम लोग सब्जी तथा फल वालों की चोरी की वीडियो अपलोड करते रह गए।

कुछ अंग्रेजी मित्रों ने बाली गई फैमली को नैतिकता का खूब पाठ भी पड़ाया पर शायद वह अंग्रेजो के आर्थिक शोषण को भूल गए।

नए प्रधानमंत्री जी ने चुनाव प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए लड़ा था या हवाई जहाज की कुर्सी के लिए कहना मुश्किल है।

इस आपा धापी में भारत की स्थिति मध्य वर्ग की तरह डांवाडोल ही रही झूठी शान दिखाने के चक्कर में देश का वास्तविक विकास कहीं पीछे छूट गया स्कूल कालेज अस्पताल जैसी बुनियादी चीजें भी जनसंख्या के हिसाब से नहीं बड़ सकी शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों का विकास बहुत धीमी गति से हुआ पर हां शोचालयो का चौमुखी विकास हुआ।

जन आंदोलनों का खूब जोर रहा अन्ना जी छाए रहे पर कहां गया लोकपाल समय मिलेगा तो आप भी ढूंढिएगा।

इस बीच हिन्दुस्तान का तो निम्न वर्ग की तरह बुरा हाल रहा भ्रष्टाचार ने इसकी बखियां उधेड़ कर रख दी रही सही कसर नौटबंदी ने पूरी कर दी भ्रष्टाचारियो या विदेशों में जमा काले धन का तो पता नहीं गरीब बहुत पीस गए।

वैश्विक भुखमरी सूचकांक एक बहुआयामी सूचकांक है। जो विश्व के विकासशील देशों की भुखमरी तथा कुपोषण के आधार पर प्रति वर्ष एक सूची जारी करता है। जिसमें 1 से 5 सबसे अच्छा रैंक माना जाता है अर्थात कोई भूखा नहीं जबकि 100 सबसे खराब रैंक माना जाता है।

इस सूची (GHI) के तहत 2015 में 104 देशों में से भारत का रैंक 80वां था इससे भी बुरी बात नेपाल का 58वां, श्रीलंका का 69वां तथा बांग्लादेश का 73वां था अर्थात वे मुल्क भारत से बेहतर स्थिति में थे। हां पाकिस्तान का रैंक 93 वां था।
यह आंकड़े और भी चुभते है साहब जब आप को पता चलता है कि आजादी के इतने बरसों बाद भी हमारे मुल्क में सरकारी गोदामों में अनाज को रखने की उचित व्यवस्था नहीं है टनों अनाज मंडियों में तथा रेलवे स्टेशनों पर रखा बारिशों के कारण बरबाद हो जाता है एक मिनट या उसे जानबूझकर खराब होने दिया जाता है या खराब किया जाता ताकि शराब कम्पनियों को बेचा जा सके भूखे को अन्न मिले या ना मिले शराबी को शराब मिलनी चाहिए एक तरफ सरकार नशे को बैन करती है पर शराब को नहीं क्यों क्या वो नशा नहीं वो घर बरबाद नहीं करती नहीं वो तो सोमरस है साहब।

आजादी के इतने बरसों बाद भी ओलंपिक्स खेलों में मिलने वाले तमगे हमें हमारी औकात बताने के लिए काफी हैं। अमेरिका के दिग्गज तैराक Michael Fred Phelps  ने अब तक पिछले 5 ओलंपिक्स को मिलाकर 22 स्वर्ण, 2 रजत और 2 कांस्य अर्थात् कुल मिलाकर 26 पदक जीते हैं। वहीं हिन्दुस्तान ने अब तक के सभी ओलंपिक खेलों को मिलाकर कुल 26 पदक हासिल किए हैं। क्या इतने बड़े देश में प्रतिभाओं की कमी है नहीं साहब सुविधाओं और सोच की कमी है। आधे से ज्यादा खेल प्रतियोगिताओं में तो हिन्दुस्तान के खिलाड़ी भाग हि नहीं ले पाते।

हिमानी दास कौन है आधे से ज्यादा देशवासियों को पता हि नहीं होगा और मीडिया ने जरूरत भी नहीं समझी बताने की

साहब इतने बरसों तक हम पाकिस्तान से ही उलझते रह गए जबकि चाईना हमें सभी क्षेत्रों में पछाड़ता हि चला गया।
अंधा कानून भी समय समय पर रही सही कसर पूरी करता रहा है पिछले दिनों एक फैसला आया भाई किसी ने भी हिरण को मारा नहीं बल्कि हिरण ने स्वयं आत्महत्या की थी।

धर्म जात पात उंच नीच संप्रदायिकता अलगाव वाद दंगों आदि के कारण भी हिन्दुस्तान का बुरा हाल रहा।ओबामा की देन असहिष्णुता लवज जोरों पर रहा।

एक और बात जिन मुद्दों पर अंग्रेजों को लगता था कि हिन्दुस्तानी आपस में लड़ लड़ कर मरते रहेंगे उन्हें उन्होंने कभी हल करने का प्रयत्न ही नहीं किया यही राजनीति समय की सरकारों की रही उल्टा उन्होंने तो कई नए विवादित मुद्दों को जन्म दिया ताकि शासन कर सकें और लोग आपस में लड़ लड़ कर मरते रहें।

नेताओं ने विवादित मुद्दों पर बीते 71 वर्षों में भाषण तो बहुत रंगीन दिए पर ठोस कदम नहीं उठाए और ना ही आगे उठाएंगे 1971 में दादी माँ ने कभी सोने की चिड़िया कहे जाने वाले इस देश में एक नारा दिया था "गरीबी  हटाओ" पोता आज भी आपको इसी नारे का अनुसरण कर वोट मांगते हुए नजर आ सकता है। गत वर्षों में यह लोग कितने अमीर हो गए आप सभी जानते हैं।

यह लोग बस जनता को मूर्ख बना अपनी तनख्वाह बड़ा सकते हैं या फिर अपनी झूठी शान बनाने के लिए विदेशों में घुम घुम कर देश का पैसा बरबाद कर सकते हैं। शहीद जवानों की शहादत का मजाक बना सकते हैं उनकी कुर्बानी को अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।

देश के लिए कुछ करने वाले मर गए या मरवा दिए गए।

खाक में मिल गए नगीने अब तो मुल्क लुट रहे हैं कमी...

इस तरह बीते 71 वर्षों ने इस मुल्क को तीन नामों में नहीं तीन वर्गों में बांट दिया है। यहाँ तक राष्ट्रीयता का सवाल है तो प्रेमचंद जी ने इसे मुल्क के लिए कोड़ करार दिया था उनका मत था इसे प्रवासी भारतीय और नेता देश भक्ति के गाने गाकर या तिरंगा झंडा फहराकर झूठा देशप्रेम दिखाने के लिए  इस्तेमाल करते हैं।

चलो इकबाल साहब के लिखे तराना-ए-हिंद कि दो लाईनें हम भी गुनगुना देते हैं
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा। हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसताँ हमारा।।
मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना। हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्ताँ हमारा।।

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