Emblem of Iran and Sikh Khanda

मध्यप्रदेश के रमणीय तीर्थ स्थल अमरकंटक में मां नर्मदा जी का उद्गम स्थल है और नेमावर नगर में मां का नाभि स्थल है। फिर ओंकारेश्वर होते हुए मां नर्मदा गुजरात में प्रवेश करके खम्भात की खाड़ी में विलीन हो जाती है। मां नर्मदा को मध्य प्रदेश और गुजरात की जीवन रेखा माना जाता है, परंतु मां के पावन जल का अधिकतर भाग मध्यप्रदेश में ही बहता है। अमरकंटक के कोटितार्थ में मां नर्मदा जी का सुंदर और भव्य मंदिर सुक्षोभित है। यहां सफेद रंग के लगभग 34 अन्य मंदिरों की मणिमाला भी मौजूद हैं।
मंदिर परिसरों में सूर्य, लक्ष्मी, शिव, गणेश, विष्णु आदि देवी-देवताओं के मंदिर प्रमुख है। समुद्रतल से अमरकंटक 3600 फीट की ऊंचाई पर स्थित अमरकंटक को नदियों की जननी कहा जाता है। यहां से लगभग पांच नदियों का उद्गम होता है जिसमें नर्मदा नदी, सोन नदी और जोहिला नदी प्रमुख है। नर्मदा की कुल 41 सहायक नदियां हैं। उत्तरी तट से 19 और दक्षिणी तट से 22। नर्मदा बेसिन का जलग्रहण क्षेत्र एक लाख वर्ग किलोमीटर है।
यह देश के भौगोलिक क्षेत्रफल का तीन और मध्य प्रदेश के क्षेत्रफल का 28 प्रतिशत है। नर्मदा की आठ सहायक नदियां 125 किलोमीटर से लंबी हैं। मसलन- हिरन 188, बंजर 183 और बुढ़नेर 177 किलोमीटर।
मगर लंबी सहित डेब, गोई, कारम, चोरल, बेदा जैसी कई मध्यम नदियों का हाल भी गंभीर है। सहायक नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में जंगलों की बेतहाशा कटाई से ये नर्मदा में मिलने के पहले ही धार खो रही हैं।
नर्मदा परिक्रमा के प्रकार :
नर्मदा परिक्रमा यात्रा मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है। पहला 3600 किलोमीटर की सम्पूर्ण नर्मदा परिक्रमा तथा दूसरा पंचक्रोशी नर्मदा परिक्रमा जिसे दूरे नर्मदा परिक्रमा या उत्तरवाहिनी नर्मदा परिक्रमा के रूप में भी जाना जाता है। पंचक्रोशी नर्मदा परिक्रमांए मां नर्मदा जी के सानिध्य में आने वाले विभिन्न क्षेत्रो में प्रत्येक वर्ष भिन्न-भिन्न रूपों में आयोजित की जाती है। जो कि 21 से 60 किलोमीटर तक की पैदल यात्रा होती है। यह परिक्रमांए यहां से प्रारंभ होती है वहीं पर समाप्त होती है। ऐसा माना जाता है जो प्राणी सम्पूर्ण नर्मदा परिक्रमा को किसी कारणवश सम्पूर्ण करने में सक्षम ना हो तो यदि वह इन परिक्रमाओ को सम्पन्न कर ले तो निश्चित ही उसे सम्पूर्ण नर्मदा परिक्रमा करने का फल प्राप्त होता है।
सम्पूर्ण नर्मदा परिक्रमा मार्ग :
अमरकंटक, माई की बगिया से नर्मदा कुंड, मंडला, जबलपुर, भेड़ाघाट, बरमानघाट, पतईघाट, मगरोल, जोशीपुर, छपानेर, नेमावर, नर्मदासागर, पामाखेड़ा, धावड़ीकुंड, ओंकारेश्वर, बालकेश्वर, इंदौर, मंडलेश्वर, महेश्वर, खलघाट, चिखलरा, धर्मराय, कातरखेड़ा, शूलपाड़ी की झाड़ी, हस्तीसंगम, छापेश्वर, सरदार सरोवर, गरुड़ेश्वर, चंदोद, भरूच। इसके बाद लौटने पर पोंडी होते हुए बिमलेश्वर, कोटेश्वर, गोल्डन ब्रिज, बुलबुलकंड, रामकुंड, बड़वानी, ओंकारेश्वर, खंडवा, होशंगाबाद, साडिया, बरमान, बरगी, त्रिवेणी संगम, महाराजपुर, मंडला, डिंडोरी और फिर अमरकंटक।
नर्मदा तट के तीर्थ :
वैसे तो नर्मदा के तट पर बहुत सारे तीर्थ स्थित है लेकिन यहां कुछ प्रमुख तीर्थों की लिस्ट। अमरकंटक, मंडला (राजा सहस्रबाहु ने यही नर्मदा को रोका था), भेड़ा-घाट, होशंगाबाद (यहां प्राचीन नर्मदापुर नगर था), नेमावर, ॐकारेश्वर, मंडलेश्वर, महेश्वर, शुक्लेश्वर, बावन गजा, शूलपाणी, गरुड़ेश्वर, शुक्रतीर्थ, अंकतेश्वर, कर्नाली, चांदोद, शुकेश्वर, व्यासतीर्थ, अनसूयामाई तप स्थल, कंजेठा शकुंतला पुत्र भरत स्थल, सीनोर, अंगारेश्वर, धायड़ी कुंड और अंत में भृगु-कच्छ अथवा भृगु-तीर्थ (भडूच) और विमलेश्वर महादेव तीर्थ।
नर्मदा नदी के तट पर कई प्राचीन तीर्थ और नगर हैं। हिन्दू पुराणों में इसे रेवा नदी कहते हैं। इसकी परिक्रमा का बहुत ही ज्यादा महत्व है।
नर्मदा परिक्रमा क्यों करनी चाहिए :
तस्य तटं प्रदक्षिणं यः करोति सः सर्वसिद्धिं लभते
अर्थातः जो कोई भक्त सच्चे मन से मां नर्मदा जी के तटों की परिक्रमा करता है, उसे सभी सिद्धियाँ और मन की शांति प्राप्त होती है
सनातन धर्म में परिक्रमा का बहुत बड़ा महत्त्व है। परिक्रमा से अभिप्राय है कि किसी भी अमूक धार्मिक स्थान या तीर्थ के चारों तरफ उसे अपने बाहिनी Right side रखते हुए घूमना या उसकी प्रदक्षिणा करना । यह षोडशोपचार पूजा का एक अंग है यह घुमना कोई साधारण सैर सपाटा नही अपितु मन को एकाग्र करने की साधना है तांकि हम काम क्रोध लोभ मोह और अंहकार पर नियंत्रण पा सके और हमारी इस अध्यात्मिक दर्शन यात्रा से किसी को कोई परेशानी ना हो हमारे मन वचन और कर्म से किसी का अहित ना हो परिक्रमा के दौरान हमें जो कुछ भी भोजन में प्राप्त हो वह अमृत तुल्य है ऐसा संकल्प कर हमें परिक्रमां प्रारंभ करनी चाहिए। इसी से हम मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं यही कलयुग में हमारी आध्यात्मिक उन्नति का प्रमुख मार्ग है।
जब आप इस दिव्य मार्ग पर चलते हुए साधु संतो का सानिध्य प्राप्त करते है उन्ही के आशीर्वाद के बल से आपका कल्याण निश्चित हो जाता है।
रहस्य और रोमांच से भरी मां नर्मदा जी परिक्रमा का तो अपना ही अलग विशेष महत्व है साधारण मानव को तो छोड़िए देवतागण भी मां का सानिध्य प्राप्त करने को आतुर रहते है। मां नर्मदा जी का पुराणो में भी उल्लेख मिलता है जिसे हम रेवाखंड के नाम से भी जानते हैं। जो अध्यात्मिक अनुभूत ऋषि मुनियों को अपने लम्बे तपो बल से प्राप्त होती है उसे आप मां नर्मदा जी की परिक्रमा में सहज भाव से ही महसूस कर पाएंगे। गावो दिहातो में से खल खल बहते हुए मां नर्मदा जी के पावन जल के साथ चलते हुए पहाड़ो को पार करते हुए आप कब अलग दुनिया में पहुँच जाएंगे आप को पता भी नही चलेगा। जिसने भी मां नर्मदा जी की परिक्रमा पूरी कर ली समझो उसने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा पुण्य कमा लिया
परिक्रमावासी लगभग 3600 किलोमीटर (दोनों तटों को मिलाकर) निरंतर पैदल चलते हुए सम्पूर्ण नर्मदा परिक्रमा सम्पन्न करते हैं। यदि अच्छे से सम्पूर्ण नर्मदा परिक्रमा की जाए तो नर्मदाजी की परिक्रमा 3 वर्ष 3 माह और 13 दिनों में पूर्ण होती है, परंतु कुछ लोग इसे 108 दिनों में भी पूरी करते हैं।
आपको सम्पूर्ण नर्मदा परिक्रमा में कितना अनुमानित समय लग सकता है ?
3600 किलोमीटर ÷ 10 किलोमीटर रोज = 360 दिनों में
3600 किलोमीटर ÷ 15 किलोमीटर रोज = 240 दिनो में
3600 किलोमीटर ÷ 20 किलोमीटर रोज = 180 दिनो में
3600 किलोमीटर ÷ 30 किलोमीटर रोज = 120 दिनो में
सम्पूर्ण नर्मदा परिक्रमा की शुरुआत :
संन्यासियों के लिए साधारणतय प्रत्येक वर्ष दशहरा के बाद पढ़ने वाली शरद पूर्णिमा से हो जाती है।
परन्तु पुरातन मान्यताओं के अनुसार वास्तविक सम्पूर्ण नर्मदा परिक्रमा की शुरुआत देवउठनी एकादशी के बाद पढ़ने वाली कार्तिक पूर्णिमा से ही होती है। हर वर्ष नवंबर से दिसंबर माह के मध्य पढ़ने वाले कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के अगले दिन देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। इस दिन जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु योगनिद्रा से जागृत होते हैं। इसके दो या तीन दिन बाद कार्तिक माह की पूर्णिमा आती है
चातुर्मास क्या होता है ?
जून से जुलाई माह के मध्य पढ़ने वाले आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी तिथि से भगवान विष्णु क्षीर सागर में चार महीने के लिए विश्राम करने चले जाते हैं। अतः आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर नवंबर से दिसंबर माह के मध्य पढ़ने वाले कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि तक चातुर्मास रहता है। शास्त्रों के अनुसार चातुर्मास में परिक्रमा पूर्णतः वर्जित मानी जाती है और शुभ कार्यो के करने की भी मनाही रहती है।
नर्मदाजी वैराग्य की अधिष्ठात्री मूर्तिमान स्वरूप है। गंगाजी ज्ञान की, यमुनाजी भक्ति की, ब्रह्मपुत्रा तेज की, गोदावरी ऐश्वर्य की, कृष्णा कामना की और सरस्वतीजी विवेक के प्रतिष्ठान के लिए संसार में आई हैं। सारा संसार इनकी निर्मलता और ओजस्विता व मांगलिक भाव के कारण आदर करता है व श्रद्धा से पूजन करता है। मानव जीवन में जल का विशेष महत्व होता है। यही महत्व जीवन को स्वार्थ, परमार्थ से जोडता है। प्रकृति और मानव का गहरा संबंध है। यह नदी विश्व की पहली ऐसी नदी है जो अन्य नदियों की अपेक्षा विपरीत दिशा में बहती है।
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