कैसे हुई कांवड यात्रा की शुरुआत
नमस्कार साथियो हर वर्ष सावन का महिना प्रारम्भ होते ही समूचे शिव भक्तों के मन में कांवड लाने की प्रबल इच्छा अपने आप ही जागृत हो उठती है। पर प्राचीन समय से ही सभी शिव भक्तो और जिज्ञासुओं के मन में एक प्रश्न रह रह कर उठता है रहता कि वास्तव में सबसे पहले कांवड यात्रा की शुरुआत किसने की थी।
सही मान्यो में यह अपने आप में हि एक यक्ष प्रश्न है। प्राचीन काल से ही विद्वानों की इस पर अलग अलग राय रही है। पर सभी विद्वान जिन नामों पर एक मत है उनमे पशुराम जी, रावण ,भगवान श्री राम तथा श्रवण कुमार जी का नाम अग्रणीय है। काल खंड पर चर्चा करें तो इन सभी महापुरुषों में से रावण का जन्म सबसे पहले हुआ माना जाता है। वह आयु में पशुराम जी तथा श्रवण कुमार दोनो से काफी बढ़ा था। जबकि पशुराम जी को चिरंजीव होने का वरदान प्राप्त है। भगवान राम से ते आयु में रावण अनुमानतन तैतीस पीढ़ी बड़ा था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवासुर संग्राम भी रावण ने प्रभु राम के पिता जी राजा दशरथ के साथ युद्ध किया था।
इस हिसाब से तो प्रथम कांवड लाने वाला महापुरुष तो रावण को हि माना जाना चाहिए फिर उसकी शिव भक्ति के आगे तो सारा संसार जन्मों जन्मों तक नतमस्तक है।
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, रावण समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव को विष के प्रभाव से बचाने के लिए गंगा जल लेकर आया था, और इसी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई। पर कुछ विद्वानों का मानना है कि समुद्र मंथन के समय तो विषपान कर भगवान शिव अमरकंटक पहुंच गए थे यहां देवताओं ने गाय के दूध से उनका अभिषेक किया था तांकि विष का प्रभाव कम हो सके।
यहां तक बात है पशुराम जी की तो उन्हे भगवान विष्णु जी का छठा अवतार माना जाता है भगवान शिव का नही। हां कुछ कथाओं के अनुसार सहस्त्रबाहु ने जब रावण को बंदी बना लिया था तो पशुराम जी ने भगवान शिव के आदेशानुसार सहस्त्रबाहु के साथ युद्ध किया था और रावण की रक्षा की थी पर कुछ विद्वानों का मानना है कि सहस्त्रबाहु और परशुराम जी के बीच युद्ध रावण को बचाने के लिए नहीं था। यह युद्ध परशुराम जी ने अपने पिता ऋषि जमदग्नि के वध का बदला लेने के लिए था जबकि रावण को तो उसके पितामह महर्षि पुलत्स्य के आग्रह पर सहस्त्रबाहु बहुत पहले ही रिहा कर चुका था। फिर भी कुछ विद्वानों का मानान है कि प्राचीन काल में परशुराम जी ने गढ़मुक्तेश्वर धाम से कांवड़ में गंगाजल लाकर उत्तर प्रदेश के बागपत में स्थित पुरा महादेव मंदिर में भगवान शिव का अभिषेक किया था बस तभी से कांवड़ यात्रा की परंपरा शुरू हुई है।
चलिए अब बात करते हैं श्रवण कुमार जी की तो यह बात जग जाहिर है कि त्रेतायुग युग में श्रवण कुमार ने अपने बुजुर्ग माता पिता के आदेशानुसार उनकी अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए उन्हें कांवड़ में बैठा कर हरिद्वार में गंगा स्नान करवाया था। यही उन्हे भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था बस तभी से ही कांवड यात्रा की शुरुआत मानी जाती है।
जबकि कुछ विद्वानों का मानान है कि पुरातन मान्यताओं के अनुसार भगवान राम जो कि भगवान विष्णु जी के सातवें अवतार थे उन्होंन बिहार के सुल्तानगंज से अपने कांवड़ में गंगाजल भरकर बाबाधाम के शिवलिंग पर सर्वप्रथम जलाभिषेक किया था बस तभी से कांवड यात्रा की शुरुआत हुई।
इन सभी मान्यताओं तथा विद्वानों के विचारों पर चर्चा करने के बाद श्रवण कुमार जी का कांवड स्वरूप सबसे ज्यादा जीवंत जान पढ़ता है। ऐसा प्रतित होता है कि वास्तव में कांवड यात्रा की शुरुआत श्रवण कुमार जी की पितृभक्ति के कारण से हुई थी माता पिता के प्रति उनके इसी अथाह प्रेम के कारण हि उन्हे भगवान शिव से भी आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ था उन्ही की प्रथम कांवड यात्रा के कारण ही पहली कांवड यात्रा की शुरुआत हुई। आप क्या राए रखते हैं कमेन्ट बाक्स में अपनी राय अवश्य दें। धन्यवाद
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