Emblem of Iran and Sikh Khanda

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ईरानी प्रतीक चिह्न और सिखों के खंडे में क्या है अंतर पहली नजर में देखने पर सिखों के धार्मिक झंडे निशान साहिब में बने खंडे के प्रतीक चिह्न और इरान के झंडे में बने निशान-ए-मिली के प्रतीक चिह्न में काफी सम्मानता नजर आती हैं परन्तु इनमें कुछ मूलभूत अन्तर हैं जैसे कि :   Colour : खंडे के प्रतीक चिह्न का आधिकारिक रंग नीला है वहीं ईरानी प्रतीक चिह्न लाल रंग में नज़र आता है। Established Year : खंडे के वर्तमान प्रतीक चिह्न को सिखों के धार्मिक झंडे में अनुमानतन 1920 से 1930 के दरमियान, शामिल किया गया था। वहीं निशान-ए-मिली के प्रतीक चिह्न को ईरान के झंडे में 1980 की ईरानी क्रांति के बाद शामिल किया गया था। Exact Date : इस ईरानी प्रतीक चिह्न को हामिद नादिमी ने डिज़ाइन किया था और इसे आधिकारिक तौर पर 9 मई 1980 को ईरान के पहले सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला खुमैनी जी ने मंजूरी के बाद ईरानी झंडे में शामिल किया गया। वहीं सिखों के झंडे का यह वर्तमान प्रतीक चिह्न विगत वर्षो के कई सुधारों का स्वरूप चिह्न है इसलिए इसके निर्माणकार और निर्माण की तिथि के बारे में सटीक जानकारी दे पाना बहुत जटिल बात है, ...

मीडिया कैसा होना चाहिए




लोकतंत्र के चार स्तंभ माने जाते हैं।

1.संसद                 
2.राष्ट्रपति
3.न्यायपालिका
4.मीडिया

मीडिया ऐसा होना चाहिए जो

1.किसी राजनीतिक संस्था, किसी औद्योगिक घराने या विदेशी ताकतों का गुलाम ना हो।

2.जो खबरों को निष्पक्ष होकर दिखाए किसी भी प्रभाव से मुक्त होकर।

3.जो केवल खबरें दिखाए किसी संवेदनशील या ज्वलनशील मुद्दे में तेल डालने का काम ना करे।

4.जो राजनीतिक पार्टियों एवं उनके नेताओं, अमीरों तथा रसूखदारों सभी बुरे लोगों की पोल खोल सके बिके नहीं।

5. किसी मुद्दे पर स्वयं जज बनकर फैसला ना दे आम लोगों  को अपनी राय रखने का मौका दे।

6. रसूखदार एंव मशहूर लोगों की बातें तो हर कोई सुनता है निर्बल की फरियाद भी सुनाए। 

7. आम लोग संसद में जाकर सवाल नहीं कर सकते इसलिए वह अपनी व्यथा को मीडिया के आगे उजागर करते हैं परन्तु यदि मीडिया ही बिका हो तो उन के सवालों और वास्तविक मुद्दों की परवाह कौन करता है।
किसी आम व्यक्ति ने आवाज बुलंद करने की कोशिश की तो या तो उसे बिके हुए पत्रकारों ने लाताड़ दिया या उसे राष्ट्रवाद के नाम  सरकारी कौप को सहना पड़ा।
अगर किसी सच्चे पत्रकार ने हिम्मत दिखाई तो या तो वह मीडिया हाउस से निकाला गया या उसने स्वाभिमान के चलते स्वंय अपना इस्तीफ़ दे दिया या फिर उसे भी सरकारी कौप का सामना करना पड़ा।

8. किसी पत्रकार को पत्रकारिता करनी चाहिए गुलामी नहीं।

9. किसी पत्रकार को पत्रकारिता करनी चाहिए राजनीति नहीं करनी चाहिए उसे अपने कार्य को समझना चाहिए कि वह पत्रकार है किसी राजनीति पार्टी का कार्यकर्ता नहीं।

नेता जी की पोल ना खुल जाएँ इसलिए वह कभी मीडियो वालों से बहुत डरते थे आज तो वो जमाना आ गया है साहब लोग पत्रकारों को भी बिकाऊ कहने लगे हैं।

10. पत्रकार में घमंड नहीं होना चाहिए। उसे मुंह फट नहीं होना चाहिए क्योंकि वह जो कहता है उसकी नैतिक जिम्मेदारी उस मीडिया हाउस की मानी जाती है जिसमें वह कार्य करता है। कोई भी भारत का आम नागरिक उन अपतिजनक शब्दों के खिलाफ जो पत्रकार ने उसके विरुद्ध बोले हैं न्यायालय में जा सकता है और उस मीडिया हाउस पर मान हानी का दावा भी कर सकता है।


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