अमीर बनने की चाबी
कार्ल हेनरिख मार्क्स जर्मन का महान दार्शनिक मार्क्सवाद का जन्म दाता जो गरीबी में पैदा हुआ गरीबों के लिए लड़ा और गरीबी में ही मर गया पर वह मरते मरते घटिया लोगों के हाथ में सरलता से अमीर बनने की एक चाबी दे गया इस चाबी का नाम था मार्क्सवाद
मार्क्सवाद के तहत कार्ल मार्क्स ने मजदूरों को शोषण करने वालों के विरुद्ध अवाज बुलंद करना सिखाया वह मानते थे समाज में दो ही वर्ग होते हैं शोषक (शोषण करने वाले),तथा शोषित (जिनका शोषण होता है)
पर मेरा मानना है के मार्क्सवाद से जितना फायदा मजदूर नेताओं का होता है उतना मजदूरों का नहीं उनके तो आागे कुआँ पीछे खाई आंदोलन करे तो मरे ना करें तो मरे सिल बट्टे में पीसना ही उनका भाग्य नजर आता है जबकि मजदूर नेता मालिकों तथा मजदूरों दोनों से लाभ कमाता है परन्तू कभी कभार ही कोई सच्चा मजदूर नेता पैदा होता है जिसे मालिक मरवा देते हैं या बदनाम करवा देते हैं बाकी सब मौज करते हैं
मार्क्सवाद का सही इस्तेमाल तो हमारे नेता करते हैं मार्क्सवाद की आड़ में वो गरीबी का मजाक उड़ा उड़ा वोट बटोर ले जाते हैं और सेवा के नाम पर भोली भाली जनता का शोषण करते हैं उनके भरे टैक्स से खुद मौज करने लगते हैं विदेेेश घुमनेे लगते हैं चुनाव से पहले वह जिन लोगों से वोटो की भीख मांगते है चुनाव के बाद वह उन्ही लोगो को पहचानते तक नही इन्हीं शोषित लोगों को अपनी फरियाद रखने के लिए इनके चौंकीदारों की गालियां खानी पड़ती है तब कहीं जाकर नेता जी मिलते हैं और चुनाव से पहले के वादे नेता जी को याद भी नहीं रहते बड़े बड़े घोटाले करने के बाद भी कुर्सी नहीं छोड़ते राजनीतिक षड्यंत्र बता कर इस्तीफा भी नहीं देते कानून को अपनी उंगलियों पर नचाते हैं देश का धन लुटकर विदेशों में जमा कराते हैं। करावें भी क्यों ना महाराज नेताओं की पगार है 1,50,000 रूपये महीना वो भी बिना income tax के एक अनुमान के मुताबिक साथ में सरकारी आवास अलग तथा बाद में पेंशन।
पूरे भारत में एक ही जगह ऐसी है जहाँ खाने की चीजें सबसे सस्ती है और वो भी अतिउतम दर्जे की वो है देश की संसद की कंटीन यहां
चाय = 1.00₹
सुप = 5.50₹
दाल= 1.50₹
खाना =2.00₹
चपाती =1.00₹
चिकन= 24.50₹
डोसा = 4.00₹
बिरयानी=8.00₹
मच्छी= 13.00₹
इसी कारण किसी नेता ने ब्यान दिया कि जो आदमी 30 या 32 रूपये रोज कमाता है वो गरीब नहीं हैं। नेता जी ऐसी कैंटिने समस्त भारत में खुलवा दीजिए वाक्य में सभी गरीब आपको दुआए देंगे।
हम सभी को भी यह सत्य ज्ञात है पर क्या करें साहब हम भारतीय बाद में हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई दलित पहले हैं हमारी जाति का नेता चुना जाए तो हमारे समाज के लिए बेहतर करेगा।
कुछ बातें
विदेश से पढ़कर आया नेता अंग्रेजी अच्छी बोल सकता है आपकी भावनाओं को नहीं समझ सकता।
पूंजीपति आपकी गरीबी का मजाक उड़ा सकता है उसको महसूस नहीं कर सकता।
फिल्म स्टार अच्छी ऐक्टींग कर सकता गविया गाना गा सकता है आपकी वास्तविक पीड़ा नहीं समझ सकता।
नेता का बेटा या कोई रिश्तेदार आपको शराब बांट सकता है आप का भला नहीं कर सकता।
कोई गुंडा केवल गुंडागर्दी कर सकता है आपका भला नहीं।
कोई फूट डालो और शासन करो की राजनीति कर सकता है देश का आर्थिक विकास जाए तेल लेने लोग भुखे मरते हैं तो मरें दिलों में जहर घुलता है तो घुले उसे इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता।
किसी नेता के बच्चे को फौज में जाते देखा है नहीं क्यों वह देश सेवा नहीं।
क्या होना चाहिए
हमें अपने में से किसी साधारण व्यक्ति को सासंद चुनना चाहिए जो इमानदार हो काम करने वाला हो बकलोल ना हो देश के लोगों का हमदर्द हो निडर हो।
बिना धार्मिक जाति गत भेदभाव के हमें अपने व्यक्तिगत फायदे को त्याग कर ऐसे किसी व्यक्ति का चुनाव करना चाहिए पर यदि ऐसा व्यक्ति भी पथ भ्रष्ट हो जाए तो अगले चुनाव में उसका बहिष्कार कर देना चाहिए।
संसद की कैंटिन और नेताओं की पेंशन बंद होनी चाहिए।
सेवा करने वालों को इतनी मोटी पगार का क्या मतलब उनकी पगार साधारण दर्जे के महान फौजी से भी कम या बराबर होनी चाहिए जो देश के लिए जान देता है मुफ्त की रोटियां नहीं तोड़ता।
मुश्किल काम है ना
इसी लिए हमारा मुल्क जो सोने की चीड़िया कहलाता था आज एक विकास शील देश है मात्र
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