Emblem of Iran and Sikh Khanda

श्री काशी विश्वनाथ जी के दर्शनों के लिए जाने के लिए सर्वप्रथम आप जी को अपने शहर से सड़क या रेल मार्ग से वाराणसी, अन्य नाम बनारस या फिर कहिए काशी पहुंचना होगा। वाराणसी में तीन प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं। वाराणसी जंक्शन, बनारस रेलवे स्टेशन (पूर्व नाम – मंडुआडीह रेलवे स्टेशन), पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन (पूर्व नाम- मुग़ल सराय जंक्शन) इनमें से अधिकांश यात्री वाराणसी जंक्शन को हि प्राथमिकता देते हैं।
मैंने अपनी दर्शन यात्रा की शुरुआत दिल्ली के आन्नद विहार टर्मिनल रेलवे स्टेशन की मैंन वाराणसी आने जाने की रेल टिकट पहले ही बुक करवा ली थी। दिनांक 20-11-2020 को गाड़ी संख्या 03258 ने ठीक 1:30 pm पर रेलवे स्टेशन से रवानगी ली। अगले दिन ठीक 2:45 am पर भोर के समय में वाराणसी जंक्शन पहुंच गया। स्टेशन से बाहर निकलकर मैने चाय नाश्ताा किया और चाय वाले ने ही मुझे बताया कि साहब आप यहां से गोदौलिया चौंक चले जाईये वहां से काशी विश्वनाथ जी का मंदिर पास में ही है आप मात्र पांच मिनट में पैदल ही मंदिर के गेट नम्बर 4 पर पहुंच जाएंगे। चाय वाले की बात मान मैने गोदौलिया चौंक के लिए शेयरिंग ऑटो लिया जिसका किराया मात्र 30 ₹ था। सुबह करीब 3 am पर में गोदौलिया चौंक पर था। गोदौलिया चौंक वास्तव में काशी का हृृृदय है। काशी आनेे वाले प्रत्येक यात्री का इससे वास्ता जरूर पड़ता है। गोदौलिया पहुंचकर ऑटो वाले ने मुझे बताया कि गोदौलिया चौंक पर बने इस नंदी महाराज जी के स्तम्भ को ध्यान से देखिए जिस तरफ नंदी महाराज जी का मुख है उसी दिशा में काशी विश्वनाथ जी का मंदिर है। मैने भी नंदी महाराज जी के मुख की दिशा में ही अपनी पैदल यात्रा प्रारंभ की ठीक 5 मिनट बाद में गेट नम्बर 4 पर पहुंच गया। वहां पर तैनात पुलिस अधिकारी ने मुझे बताया कि मंदिर के दर्शन 4 बजे से चालू होंगे अभी मंगला आरती चल रही है जिसमें टिकट लेकर ही शामिल होने दिया जाता है। इस पर मैने अधिकारी से पूछा कि यहां आस पास कोई गुरूद्वारा साहिब है तो उन्होंने मुझे बताया कि यहां से मात्र पांच मिनट की दूरी पर ही नीचीबाग में ऐतिहासिक गुरूद्वारा बड़ी संगत साहिब जी है मैने तुरंत गुरूद्वारा साहिब का रूख किया। गुरूद्वारा साहिब पास में ही था जिसके कपाट भी 4 बजे ही खुले मुझे कुछ देर गेट पर ही इंतजार करना पड़ा। मैने सर्वप्रथम गुरूद्वारा साहिब के अंदर जा कर माथा टेका यह गुरूद्वारा साहिब गुरू नानक देव जी, गुरू तेग बहादुर जी और गुरू गोबिंद सिंह जी महाराज से सम्बंधित है। यहां पर 1660 ईसवी में गुरू तेग बहादुर महाराज जी ने पवित्र कुंए का निर्माण करवाया था। गुरूद्वारा साहिब में ही में नहा धोकर तैैैैयार हो गया और ठीक 4:30 am पर में काशी विश्वनाथ जी के गेट नम्बर 4 पर वापिस पहुंच गया। यहां पर श्रद्धालुओं की सुविधा हेतु निःशुल्क लोकर रूम मौजूद है। आप को अपना बैग, फोन और अन्य किसी भी प्रकार का इलेक्ट्रॉनिक डिवाईस यही जमा करवाना होगा मंदिर परिसर में इन्हें लेकर जाने की अनुमति नहीं है। अपना सम्मान लाकर में जमा करवा में मंदिर की दर्शन लाईन में लग गया कड़ी चैकिंग के बाद में मात्र पांच मिनट में मंदिर के गर्भगृह में पहुंच गया वहां पर प्रभु जी के दर्शन कर धन्य हो गया जय हो काशी विश्वनाथ महाराज जी की मंदिर के गर्भगृह में किसी को भी ज्यादा देर नहीं रूकने दिया जाता है। आपको केवल एक से दो मिनट का ही समय मिलेगा। इसके बाद मैंने मंदिर परिसर में ही बने पवित्र कुंए के भी दर्शन किए माना जाता है कि औरंगजेब के आक्रमण के समय पुजारी लोग मूल शिवलिंग को लेकर इसी पवित्र कुंए में कुद गए थे। औरंगजेब ने इस पवित्र स्थान को काफी क्षति पहुंचाई थी जिसके चलते इस मंदिर का पुनर्रुद्धार का कार्य महारानी अहिल्या बाई होल्कर जी ने 1780 में करवाया था 1853 में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह जी ने मंदिर के गुंबद के निर्माण के लिए 1 टन शुद्ध सोने को यहां भेट स्वरूप दिया था।
काशी विश्वनाथ जी के भव्य दर्शनों के बाद मैंने मंदिर परिसर में ही मैंने अन्य शिव रूपों के भी दर्शन किए और फिर में मुख्य मंदिर से बाहर निकल आया। इसके बाद मैने माँ अन्नपूर्णा जी के मंदिर के दर्शन किए और फिर में गेट नम्बर 4 से बाहर निकल कर आगे बने गेट नम्बर एक की तरफ चला गया। रास्तेे में जो मैैंने एक बात नोटिस की वो यह है कि बनारस में पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था काफी कड़ी है। आपको बनारस की तंंग गलियों में भी प्रत्येक चप्पे चप्पे पर पुुुलिस अधिकारी तैनात मिलेंगे जो यात्रियों की हर यथा संभव मदद करने का प्रयास करते हैं वह यात्रियों से बहुत ही नरमी से बात करते हैं। इसके अलावा बनारस के लोगों की बोलनी भी काफी मीठी हैै उनसेे कुछ पूछनेे पर वह भी आपको प्रत्येक जगह के बारे मेंं बहुत ही खुुुशी खुशी से बताते हैं जबकि देश के बड़ेे महानगरों मेंं कोई सीधे मुंह बात करना पसंद नहीं करता।
खैर गेट नम्बर एक से मैंने माँ विशालाक्षी शक्ति पीठ मंदिर के दर्शन किए और फिर पास में ही स्थित हनुमान जी के मंदिर के दर्शन करने के बाद में मीर घाट की तरफ चला गया। छट पूजा का महापर्व होने कारण यहां वाराणसी के घाटो पर श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ था मेरी किस्मत काफी अच्छी है जो कि मुझे सूर्य देवता के इस महान पर्व पर काशी विश्वनाथ जी के और घाटो पर सूर्य देवता जी को अर्ग देते हुए श्रद्धालुओं के दर्शन करने का मौका मिला। सच मे में धन्य हो गया बहुत बहुत शुक्रिया आप का भोले नाथ जी।
इसके बाद मैंने मात्र 50 ₹ में मीर घाट से दशाश्वमेध घाट तक करीब 20 से 25 मिनट तक नौका विहार किया। इसके बाद में दशाश्वेेेमेेध घाट से ऊपर आ गया रास्ते में मैने काशी विश्वनाथ जी के मंदिर की तरफ जाने वाले एक और द्वार के दर्शन किए। इसके बाद मैने खिचड़ी बाबा जी के मंदिर के भी दर्शन किए यहां हर रोज खिचड़ी का प्रशाद बटता है। इसके बाद में पुनः गेट नम्बर 4 की तरफ हो लिया करीब डेढ़ किलोमीटर चलने के बाद मैने बाबा भैरव नाथ जी के मंदिर के दर्शन किए फिर उसके बाद में वहां से थोड़ी ही दूरी पर स्थित मृत्युंजय मंदिर के दर्शन करने चला गया।
वहां से फिर मैने सारनाथ का रूख किया। एक आटो वाले ने मुझे समझाया कि आप यहां से पहले 10 ₹ में शेयरिंग ऑटो में बैठकर कजाक पूरा चलें जाए। वहां से 15 ₹ देकर शेयरिंग ऑटो में आशा पुर चले जाईगा। वहां से शेयरिंग ऑटो में सारनाथ के मात्र 10 ₹ ही लगेंगे। मैने ऐसा ही किया और में मात्र 35 ₹ में सारनाथ भगवान बुद्ध के मंदिर पहुंच गया। म॔दिर कोरोना महामारी के कारण अभी पूरी तरह से खुला नहीं था। मंदिर परिसर में ही एक धर्मभाणकभिक्षु जी अपने कुछ शिष्यों को शायद तिब्बती भाषा में कुछ ज्ञान दे रहे थे। मेरा मन कुछ घड़ी उनके पास बैठने को हुआ तो में भी उनके शिष्यों के पीछे जाकर बैठ गया। मुझे उनकी बात रत्ती भर भी समझ नहीं आ रही थी पर मेरे मन में उस समय मात्र दो ही लाइनें चल रही थी।
बुद्धम शरणम गच्छामि, धम्मम शरणम गच्छामि
इसके बाद में बौद्ध भिक्षु महोदय जी को प्रणाम कर मंदिर परिसर में ही बने चिड़ियाँ घर को देखने चला गया जिसकी टिकट मात्र 10 ₹ थी। इसके बाद मैंने धामेख स्तूप और सारनाथ संग्रहालय के दर्शन किए जिसकी टिकट मात्र 20+5 ₹ थी। कोरोना महामारी के कारण यहां सभी कैश काउंटर बंद थे। इसलिए मुझे वहां दिल्ली से हि घुमने आए एक दम्पति ने आनलाईन paytm की मदद से टिकट निकाल कर दी जिसे उन्होंने मेरे whatsapp पर send कर दिया। जिससे में संग्रहालय के दर्शन कर सका।
इसके बाद में वहां से 10 ₹ में शेयरिंग ऑटो पकड़ वापिस आशा पुर आ गया। वहां दूसरे आटो वाले ने मुझे बताया कि आप यहां से 20 ₹ में शेयरिंग ऑटो पकड़ मैदागिन चले जाएँ वहां से नीचीबाग पास में ही है। मैने ऐसा ही किया। मैदागिन पर उतरकर में पैदल ही गुरूद्वारा बड़ी संगत साहिब नीचीबाग पहुंच गया। वहां मैंने दुबारा माथा टेका और गुुरूद्वारा साहिब जी के भाई जी ने मुझे बहुत सत्कार से लंगर भी शकाया। लंगर शकने के बाद प्रबंधकों से अनुमति ले में लंगर हाल में ही कुछ घड़ी सों गया और दोपहर के 4 बजे उठा फिर मैंने समय की पाबंदी को देखतेे हुए बनारस के मुख्य दर्शनिए स्थलोंं को ही भेेंट देेेनेे का निश्चय किया। बनारस को मंदिरों का शहर क्यों कहा जाता है यह बात मुझे पूर्णतया समझ आ चुकी थी मंदिरों में बनारस है या बनारस में मंदिर है इस बात का निर्णय आप स्वयं बनारस में जाकर कीजिएगा यकीन मानिए आप को बिल्कुल भी महसूस नहीं होगा कि आप किसी पराए शहर में भ्रमण कर रहे हैं। इस शहर की भागम भाग भरी जिंदगी के लिए में केवल दो ही लाइनें कहना चाहूँगा।
सुबह बनारस, शाम बनारस जब देखो जाम बनारस
खैर गुरुद्वारा साहिब से आगया ले मैंने पैदल ही गुरूबाग की तरफ जाने का निश्चय किया गुुुरूबाग में गुरू नानक देव जी के ऐतिहासिक गुरूद्वारा साहिब है वहां माथा टेक में 20 ₹ में शेयरिंग ऑटो में बैठकर दुर्गा माँ मंदिर पहुंच गया। वहां के दर्शनों के बाद में वहां से पैदल ही संकट मोचन हनुमान मंदिर चला गया। वहां से में बनारस हिन्दू विश्विद्यालय की तरफ जाने वाले शेयरिंग ऑटो में बैठ गया। ऑटो वाला लंका लंका चिल्ला रहा था मैंने बड़ी उत्सुकता से पूछा कि यहां बनारस में लंका भी है उसने हँसते हुए कहा नहीं साहब यहां राम लीला होती है ना उसी स्थान को लोकल लोग लंका कहकर पुकारते हैं। थोड़ी देर बाद ही उसने मुझे मात्र 10 ₹ में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के मुख्य गेट पर उतार दिया।विश्वविद्यालय परिसर में ही नया विश्वनाथ मंदिर है। फिर में मुख्य गेट से ही विश्वविद्यालय के अंदर जाने वाले शेयरिंग ऑटो में बैठ गया तभी उस ऑटो वाले से एक सज्जन ने पूछा हैदराबाद चलोगे क्या में काफी हैरान हो गया और मैंने बड़ी हैरत से ऑटो वाले से कहा ऑटो से हैदराबाद वो हस पड़ा और वह सज्जन भी तब ऑटो वाले ने मुझे बताया कि आप जानते ही होंगे कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के निर्माण का श्रेय पंडित मदन मोहन मालवीय जी को जाता है पंडित जी सच्चे देशभगत थे इसलिए उन्हें महामाना की उपाधि दी गई थी उस समय पंडित जी के पास इतनी धन सम्पदा नहीं थी कि वह अकेले ही इतने बड़े विश्वविद्यालय का निर्माण करवा सकें इसलिए उस समय के राजाओं ने पंडित जी की मदद की पंडित जी ने भी निःस्वार्थ भाव से विश्वविद्यालय परिसर में ही प्रत्येक मदद करने वाले राजा के नाम से कुछ ना कुछ बनवा दिया।विश्वविद्यालय परिसर में हैदराबाद के निजाम के नाम सेे जो जगह बनी है उसेे शार्ट में यहां के छात्र हैदराबाद बोलतेे हैं और साहिब विश्वविद्यालय परिसर में ही जो नया विश्वनाथ मंदिर है ना उसके निर्माण का श्रेय बिरला परिवार को जाता है इसलिए उसे बिरला मंदिर भी कहते हैं बातो ही बातों में मंदिर पहुंच गया ऑटो वाले ने मुुझ से मात्र 10 ₹ किराया लिया वहां मंंदिर के दर्शन करने के बाद में पुनः विश्वविद्यालय के मुख्य गेट पर वापिस आ गया। शाम के 6 बज चुके थे मुख्य गेट से ही मैने वाराणसी कैंट का शेयरिंग ऑटो लिया जिसने मुझे मात्र 30 ₹ में कैंट पहुंचा दिया और वहां से रात्रि 8 बजे कि गाड़ी संख्या 03257 में मेरी सीट बुक थी। अगले दिन दिनांक 22-11-2020 को करीब 10:45 am पर अपनी मंगलमय यात्रा सम्पूर्ण कर में दिल्ली वापिस पहुंच गया।
कुछ आवश्यक बातें
बनारस यात्रा के दौरान वैसे तो मुझे अन्य महानगरों के मुकाबले वहां के सभी लोग मददगार ही लगे पर एक बात जो आपको स्मरण रखनी है वो यह कि हर जगह अच्छे लोगों के बीच एक दो बुरे लोग जरूर होते हैं इसलिए देर रात में बनारस घुमने से बचें। माफ कीजिएगा किसी भी राह चलते बाबा से प्रशाद लेकर ग्रहण ना करें। मुख्य मंदिर के गेट नम्बर 4 पर हि निःशुल्क लाकर रूम उपलब्ध हैं कृपया वहीं अपना सम्मान जमा कराए वरना प्रशाद बेचने वाले सम्मान रखने के नाम पर आपको चूना लगा सकते हैं। किसी भी प्रकार की समस्या होने पर तुरंत पुलिस अधिकारियों से सम्पर्क करें आपको बनारस के चप्पे चप्पे पर पुलिस अधिकारी मौजूद मिलेंगे जो अन्य महानगरों के पुलिस अधिकारियों के मुकाबले काफी नरमी से पेश आते हैं और आपकी हर यथा संभव मदद करने का प्रयास करते हैं। आशा करता हूँ आप जी को इस लेख के माध्यम से काफी जानकारी मिली होगी धन्यवाद जय शिव
काशी विश्वनाथ दर्शन यात्रा का विडियो दर्शन करो जी
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