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Emblem of Iran and Sikh Khanda

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ईरानी प्रतीक चिह्न और सिखों के खंडे में क्या है अंतर पहली नजर में देखने पर सिखों के धार्मिक झंडे निशान साहिब में बने खंडे के प्रतीक चिह्न और इरान के झंडे में बने निशान-ए-मिली के प्रतीक चिह्न में काफी सम्मानता नजर आती हैं परन्तु इनमें कुछ मूलभूत अन्तर हैं जैसे कि :   Colour : खंडे के प्रतीक चिह्न का आधिकारिक रंग नीला है वहीं ईरानी प्रतीक चिह्न लाल रंग में नज़र आता है। Established Year : खंडे के वर्तमान प्रतीक चिह्न को सिखों के धार्मिक झंडे में अनुमानतन 1920 से 1930 के दरमियान, शामिल किया गया था। वहीं निशान-ए-मिली के प्रतीक चिह्न को ईरान के झंडे में 1980 की ईरानी क्रांति के बाद शामिल किया गया था। Exact Date : इस ईरानी प्रतीक चिह्न को हामिद नादिमी ने डिज़ाइन किया था और इसे आधिकारिक तौर पर 9 मई 1980 को ईरान के पहले सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला खुमैनी जी ने मंजूरी के बाद ईरानी झंडे में शामिल किया गया। वहीं सिखों के झंडे का यह वर्तमान प्रतीक चिह्न विगत वर्षो के कई सुधारों का स्वरूप चिह्न है इसलिए इसके निर्माणकार और निर्माण की तिथि के बारे में सटीक जानकारी दे पाना बहुत जटिल बात है, ...

Trimbakeshwar Jyotirling kaise jaye

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                  त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे नमस्कार  साथियों अपने इस लेख के माध्यम से में आप जी को अपनी त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन यात्रा का सम्पूर्ण विवरण बताने जा रहा हूँ जो कि इस प्रकार से है।   त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नाशिक जिले में स्थित है। त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग  की दर्शन यात्रा पर जाने के लिए आप जी को अपने शहर से सड़क या रेल मार्ग से नासिक रोड रेलवे स्टेशन पहुंचना होगा। नाशिक रोड रेलवे स्टेशन से  त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी महज 35 किलोमीटर है। नाशिक रोड रेलवे स्टेशन से  त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग  पहचनें में आप को कम से कम एक घंटे का समय लगेगा।   आप जी को रेलवे स्टेशन के बाहर से सीधी तत्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग जाने वाली Green City Bus आसानी से मिल जाएँगी। आप जी रेलवे स्टेशन से ही शेयरिंग आटो में बैठकर भी त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग जा सकते हैं। यहां के आटो वालों से यरा सम्भलकर ठीक है जी। इसके अलावा आप शेयरिंग आटो या Bus के माध्यम से O...

Sri Bhramaramba Mallikarjuna Swamy Jyotirling Srisailamkaise jaye

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                        मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे नमस्कार साथियों अपने इस लेख के माध्यम से में आप जी को अपनी  श्री भ्रमराम्बा मल्लिकार्जुन स्वामी ज्योतिर्लिंग की  यात्रा का सम्पूर्ण विवरण बताने जा रहा हूँ जो कि इस  श्री भ्रमराम्बा मल्लिकार्जुन स्वामी ज्योतिर्लिंग  की दर्शन यात्रा पर जाने के लिए आप जी को अपने शहर से सड़क या रेल मार्ग से श्री शैलम पहुंचना होगा। यहां पहुंचने के लिए सबसे सुविधा जनक रेलवे स्टेशन हैदराबाद और कर्नूलु (करनूल) सिटी रेलवे स्टेशन हैं। दोनों ही स्थानों से आपको श्री शैलम जानें के लिए बस मिल जाएगी। हैदराबाद से श्री शैलम की दूरी तकरीबन 213 किलोमीटर है और श्री शैलम पहुंचने में 5 से 6 घंटे का समय लगता है और कर्नूलु सिटी से से श्री शैलम की दूरी तकरीबन 180 किलोमीटर है और श्री शैलम पहुंचने में 4 से 5 घंटे का समय लगता है  तिरूपति बालाजी दर्शन की दर्शन यात्रा स्म्पूर्ण करने के पश्चात मैंने दिनांक 3-10-2021 को शाम 6 बजे के करीब गाड़ी संख्या 02798 में सीट ग्रहण की और अगले दिन दिनांक...

Tirupati Bala Ji kaise jaye

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Rameshwaram Jyotirlinga kaise jaye

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रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे नमस्कार साथियों अपने इस लेख के माध्यम से में आप जी को अपनी रामेश्वरम र्ज्योतिर्लिंग दर्शन यात्रा का सम्पूर्ण विवरण बताने जा रहा हूँ जो कि इस प्रकार से है।  रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की दर्शन यात्रा पर जाने के लिए आप जी को अपने शहर से सड़क या रेल मार्ग से मदुरै जाना होगा। अगर आपके शहर से कोई ट्रेन सीधा रामेश्वरम जाती है तो बहुत अच्छी बात है।   मदुरै  रेलवे स्टेशन से रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की दूरी लगभग 175 किलोमीटर है । आप सड़क या रेल मार्ग से असानी से मदुरै से रामेश्वर पहुंच सकते हैं। अपनी दर्शन यात्रा की शुरूआत हेतु में बस पांबन ब्रिज के मरम्मत कार्य के पूरा होने का इंतजार कर रहा था। नए पांबन ब्रिज के निर्माण कार्य के चलते भी पुराने पांबन ब्रिज पर ट्रेन ट्राफिक बंद था। जैसे ही मुझे खबर मिली की पांबन ब्रिज पर ट्रेन ट्राफिक पुनः बहाल कर दिया गया है मैंने तुरंत दिनांक 27-09-2021 की गाड़ी संख्या 02688 में अपनी टिकट बुक करवा ली मुझे वैक्सीन के दोनों डोज लग चुके थे इसलिए में अपनी यात्रा के पूर्णतय आश्वस्त था।  27-09-2021 को गाड़ी सं...

ਭਾਰਤ ਦੇ ਸੰਵਿਧਾਨ ਵਿੱਚ ਧਾਰਮਿਕ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਆਰਟੀਕਲ 25

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                       ਸੰਵਿਧਾਨ ਅਤੇ ਪੰਜ ਕਕਾਰ                                ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜੀ ਕਾ ਖਾਲਸਾ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜੀ ਕੀ ਫ਼ਤਹਿ ਇਸ ਲੇਖ ਰਾਹੀਂ ਦਾਸ ਆਪ ਜੀ ਦਾ ਧਿਆਨ ਸਿੱਖ ਕੌਮ ਦੀ ਧਾਰਮਿਕ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦੇ ਨਾਲ ਜੂੜੇ ਮਸਲਿਆਂ ਵਲ ਖਿੱਚਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜੋ ਕਿ  ਸਮੇਂ ਸਮੇਂ ਤੇ ਵਾਪਰਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ। ਜਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕੀ ਦਾਸ ਸਮਝਦਾ ਹੈ ਕਿ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਦੇ ਤਮਾਮ ਆਗੂ, ਧਾਰਮਿਕ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ,  ਬੁੱਧੀਜੀਵੀ ਵਰਗ, ਕਾਨੂੰਨੀ ਸਲਾਹਕਾਰ, ਮੈਂਬਰ ਆਫ ਪਾਰਲੀਮੈਂਟ ਅਤੇ ਸ਼ੁਭਚਿੰਤਕ ਵਰਗ ਭਾਰਤ ਦੇ ਸੰਵਿਧਾਨ ਤੋਂ ਭਲੀ ਭਾਂਤ ਜਾਣੂ ਹੋਣਗੇ। ਕਿ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦੇ ਆਰਟੀਕਲ 25 'ਚ ਧਾਰਮਿਕ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰ ਦਾ ਜ਼ਿਕਰ ਹੈ। ਇਸ ਦੇ ਤਹਿਤ ਭਾਰਤ ਦੇ ਹਰੇਕ ਨਾਗਰਿਕ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਅੰਤਰ ਆਤਮਾ ਮੁਤਾਬਕ ਧਰਮ ਨੂੰ ਮੰਨਣ, ਉਸ ਦੀਆਂ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਦਾ ਪਾਲਣ ਕਰਨ ਤੇ ਉਸ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਨ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ। ਇਸ ਆਰਟੀਕਲ 25 ਵਿੱਚ ਸਪੱਸ਼ਟੀਕਰਨ (1) ਦੇ ਤਹਤ ਸਿੱਖ ਕੌਮ ਨੂੰ ਕਿਰਪਾਨ ਧਾਰਨ ਕਰਨ ਦਾ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਾ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ ਪਰ ਇਸ ਸਪੱਸ਼ਟੀਕਰਨ ਵਿੱਚ ਕਿੱਤੇ ਵੀ ਪੰਜ ਕਕਾਰਾਂ ਅਤੇ ਪਗੜੀ ਦਾ ਜ਼ਿਕਰ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਆਪ ਸਮਸਤ ਜਾਣਕਾਰਾਂ ਦੇ ਚਰਨਾਂ ਵਿੱਚ ਦਾਸ ਬੇਨਤੀ ਕ...

ਅੰਤਿ ਕਾਲਿ ਜੋ ਲਛਮੀ ਸਿਮਰੈ Ant kaal jo lakshmi simrey अंति कालि जो लछमी सिमरै

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  भगत त्रिलोचन जी ने गुरू ग्रंथ साहिब में मनुष्य की अंतिम अवस्था के समय बनने वाली स्मृति के अनुसार उसे अगली कौन सी योनि मिलेगी इसका का जिक्र बड़े ही सुंदर ढंग से अंग (पेज) संख्या 526 पर किया है। जिसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार से है। Video link  Click here  ↔  https://youtu.be/siO1-6XvjKY ਰਾਗ ਗੂਜਰੀ            राग गुजरी            Raag Goojaree ਅੰਤਿ  ਕਾਲਿ  ਜੋ  ਲਛਮੀ  ਸਿਮਰੈ  ਐਸੀ  ਚਿੰਤਾ  ਮਹਿ  ਜੇ  ਮਰੈ  ॥ ਸਰਪ  ਜੋਨਿ  ਵਲਿ  ਵਲਿ  ਅਉਤਰੈ  ॥੧॥ अंति कालि जो लछमी सिमरै ऐसी चिंता महि जे मरै ॥ सरप जोनि वलि वलि अउतरै   ॥१॥ Ant kaal jo lachhmee simrai, aisee chintaa mehi je marai. sarap jon val val autarai.   ॥1॥ Meaning:  At the very last moment, one who thinks of wealth, and dies in such thoughts, shall be reincarnated over and over again, in the form of snakes.  पद्अर्थ:  अंति कालि = अंत के समय, मरने के वक्त। लछमी = माया, धन। ...

अजामिल की कथा

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                        अजामल की कथा गौड़ सम्प्रदाय के ब्राह्मणों का एक अग्रहार कन्नोज में स्थित था। कन्नोज शब्द की उत्पत्ति वास्तव में संस्कृत भाषा के शब्द कान्यकुब्ज से हुई है। इसी कारण से कन्नोज के इन  ब्राह्मणों को इतिहास में कान्यकुब्ज ब्राह्मणों की संज्ञा दी गई है। अग्रहार से आश्य ऐसी जगह से हैं यहां केवल ब्राह्मण रहते हों कान्यकुब्ज ब्राह्मणों के अग्रहार में अजामल नाम का एक नवयुवक ब्रह्मण अपने वृद्ध माता पिता के साथ रहता था। वह  बड़ा ही सदाचारी पितृ भगत शास्त्रज्ञाता  मंत्रवेत्ता  और शीलवान था। इसके साथ साथ वह बहुत ही नेक स्वभाव का था। वृद्ध माता पिता के साथ साथ उसे अग्रहार के अन्य वृद्ध ब्राह्मणों की सेवा करने में भी बहुत आनंद आता था। इसी कारण से वह अग्रहार का एक लोकप्रिय चेहरा बन गया था। एक दिन जब पिता जी ने उसे पूजा अर्चना के लिए वन से फल-फूल, समिधा व कुश लाने को भेजा तो संयोग वश इसने किसी  पुरूष और महिला को नदी किनारे सम्बन्ध बनाते देख लिया। जिस का इस के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा घर पहुंच क...