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Showing posts from July, 2020

Emblem of Iran and Sikh Khanda

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ईरानी प्रतीक चिह्न और सिखों के खंडे में क्या है अंतर पहली नजर में देखने पर सिखों के धार्मिक झंडे निशान साहिब में बने खंडे के प्रतीक चिह्न और इरान के झंडे में बने निशान-ए-मिली के प्रतीक चिह्न में काफी सम्मानता नजर आती हैं परन्तु इनमें कुछ मूलभूत अन्तर हैं जैसे कि :   Colour : खंडे के प्रतीक चिह्न का आधिकारिक रंग नीला है वहीं ईरानी प्रतीक चिह्न लाल रंग में नज़र आता है। Established Year : खंडे के वर्तमान प्रतीक चिह्न को सिखों के धार्मिक झंडे में अनुमानतन 1920 से 1930 के दरमियान, शामिल किया गया था। वहीं निशान-ए-मिली के प्रतीक चिह्न को ईरान के झंडे में 1980 की ईरानी क्रांति के बाद शामिल किया गया था। Exact Date : इस ईरानी प्रतीक चिह्न को हामिद नादिमी ने डिज़ाइन किया था और इसे आधिकारिक तौर पर 9 मई 1980 को ईरान के पहले सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला खुमैनी जी ने मंजूरी के बाद ईरानी झंडे में शामिल किया गया। वहीं सिखों के झंडे का यह वर्तमान प्रतीक चिह्न विगत वर्षो के कई सुधारों का स्वरूप चिह्न है इसलिए इसके निर्माणकार और निर्माण की तिथि के बारे में सटीक जानकारी दे पाना बहुत जटिल बात है, ...

Behlol dana aur dhokebaaz log

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             30.बोहलोल साहिब और धोखेबाज लोग एक मरतबा हारून अपने दरबार में बहुत गुस्से में बैठा हुआ था। एक सय्याह सौदागर अपने इलम एंव झूठी बातों के दम पर उससे काफी बड़ी रकम ऐंट कर ले गया था। उसने अपनी मीठी बातों से हारून की आंखों मे धूल झोंक कर उसे अपना दीवाना बना लिया था और उसके लिए सदा जवान रहने वाला माजून बनवाकर लाएगा यह वादा करके गया था पर एक अर्से से वापीस नहीं लौटा था। हारून के दरबार जब इस धौखेबाज की बात चल रही थी तो बोहलोल साहिब भी वहीं मौजूद थे। हारून की शक्ल देख कर उन्हें हँसी आ गई। बोहलोल साहिब ने हँसी रोकते हुए बोले। इस धोखे बाज़ सय्याह का क़िस्सा तो बिल्कुल एक बुढ़िया के मुर्गे और बिल्ले के क़िस्से से मिलता जुलता है। बयान करो हारून ने बेकरारी से कहा। हुजूर क़िस्सा कुछ यूँ है के एक मरतबा एक बिल्ली ने एक बुढ़िया का पालतू मुर्ग़े को झपट लिया। बुढ़िया उसके पीछे दुहाई देती दौड़ी। अरे-अरे। पकड़ो। इस चोट्टी बिल्ली को पकड़ो। ज़ालिम मेरा दो सेर का मुर्ग़ लेकर भागी जाती है। कोई मेरी मदद करो। कोई तो इस बिल्ली को पकड़ो। हाय मेरा नाज़ो से पाला मुर्ग...

Behlol dana aur masoom bacha

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             29.बोहलोल साहिब और मासूम बच्चा एक मरतबा बोहलोल साहिब बगदाद की गलियों से गुजर रहे थे कि कुछ छोटे बच्चे एक जगह इकठ्ठे खेल रहे थे वहींं पास बैैैठा एक मासूम बच्चा बड़ी ही मायूूूसी में इन बच्चों को खेलते हुए देख रहा था। तभी बोहलोल साहिब ने इसके पास बैठते हुए कहा बच्चे तुम क्यों नहीं इन बच्चों के साथ खेलते। बच्चे ने जवाब दिया बोहलोल क्या हम सिर्फ खेलने के लिए जमीन पर आए हैं। बोहलोल साहिब बच्चे की इस बात पर हैरान रह गए और बोले प्यारे बच्चे अभी तुम सिर्फ अपना ध्यान खेलने पर लगाओ इतनी गहराई की बात सोचने की तुम्हारी उम्र नहीं। बच्चे ने अगला सवाल किया बोहलोल क्या हम सब भी एक दिन मर जाएंगे। बोहलोल साहिब ने बच्चे की जानिब बड़ी संजिदगी से देखा वह समझ गए शायद इस बच्चे ने किसी की मौत पहली बार देखी है। इसलिए यह ऐसे सवाल कर रहा है शायद इसके कोमल मन को गहरा धक्का लगा है। इससे पहले बोहलोल साहिब कुछ बोलते मासूम बच्चा फिर बोला मुझे मौत से बहुत डर लगता है। बोहलोल साहिब ने उसके सिर पर हाथ फेरा और उसे दिल्लासा देते हुए कहा बच्चे अभी तुम बहुत छोटे हो यह...

Behlol dana aur gustakh aurat

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               28. बोहलोल साहिब और गुस्ताख औरत  एक बार बोहलोल साहिब अपने आसे पर सवार उछलते कूदते बगदाद की गलीयों से गुजर रहे थे कि एक हलवाई ने उन्हें आवाज दी। बोहलोल साहिब, बोहलोल साहिब रूकीए रूकीय इधर तो आइए जरा मेरी बात सुनिए। क्या बात है जल्दी कहो। बोहलोल साहिब आप बस दो मिनट इस तख्ते पर बैठ कर मेरी दुकान का ध्यान रखिए में जरा सामने से हो आऊ। ठीक है ठीक है पर जरा जल्दी आना मुझे भी किसी जरूरी काम जाना है। में बस गया और आया। आते ही उसने बोहलोल साहिब को दुकान से गर्मा गर्म दुध पेश किया। यह क्या है यह ना सदका है ना खैरात है आपने मेरी दुकान का ध्यान रखा बस आप इसे अपना मेहनताना समझ लीजिए। ठीक है ठीक है खुदा तेरा बहुत बहुत शुक्र है। दूध खत्म कर हलवाई को अलविदा कह बोहलोल साहिब उछलते कूदते आगे बढ़ गए। बारिश होने के कारण बगदाद की गलीयों में काफी कीचड़ हो गया था। एक जगह एक औरत अपने महबूब के साथ बैठी हुई थी कि अचानक बोहलोल साहिब वहां से तेजी से गुजरे तो उस औरत के लिबास पर दो तीन कीचड़ के छींटे आन गिरे इस पर औरत ने चिल्लाते हुए अपने महब...

Behlol dana aur Abdulla mubarak

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                                27.बोहलोल साहिब और अब्दुल्लाह मुबारक एक मरतबा अब्दुल्लाह मुबारक के दिल में बोहलोल साहिब से मिलने की तड़फ पैदा हुई वह उनकी तलाश में निकल पड़े एक जगह उनकी नजर पड़ी तो बोहलोल साहिब नंगे सर नंगे पांव अपनी ही मस्ती में लेटे हुए थे। अब्दुल्लाह मुबारक उनके क़रीब गए और बड़े अदब से सलाम अर्ज किया। बोहलोल साहिब ने सलाम का जवाब दिया। अब्दुल्लाह मुबारक बोले ए खुदा के नेक बंदे मुझे कुछ नसीहत कर के में ज़िन्दगी में गुनाहों से कैसे बचूं और मुझे राहे निजात का रास्ता दिखा। बोहलोल साहिब ने बड़ी ही सादगी से कहा जनाब जो ख़ुद आजिज़ और परेशान हो वो भला दूसरों की क्या मदद कर सकता है मैं तो एक दीवाना हूँ। आप जाकर किसी ऐसे अक़्लमन्द की तलाश करें। जो आपकी फ़रमाइश पूरी कर सकने के काबिल हो। अब्दुल्लाह मुबारक अपने सीने पर हाथ रखते हुए बोले बोहलोल साहिब इसी लिए तो यह नाचीज़ आपकी ख़िदमत में हाज़िर हुआ है के सच्ची बात जान सके क्योंकि सच कहने की जुर्अत तो केवल दीवानें ही कर सकते हैं। बोहलोल साहिब ने अब्...

Behlol dana aur sheikh junaid

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                              26. बोहलोल साहिब और शेख़ जुनैद बग़दादी  शेख़ जुनैद बग़दादी अपने समय के काबिल विद्वान थे लोग उनका बहुत मान सम्मान किया करते थे। एक मरतबा वह बग़दाद की गलियों से अपने मुरीदों के साथ गुजर रहे थे कि अचानक उन्होंने रूक कर मुड़ते हुए कहा मेरे साथियों आज में आप लोगों को किसी खास हस्ती से मिलवाना चाहता हूँ। आप लोग जल्दी जल्दी मेरे पीछे आइए। सभी मुरीद जल्दी जल्दी उनके पीछे हो लिए। वो देखो मेरे साथियों अपनी बाजू के सरहाने पर सर रखे वह दरवेश सौ रहा है। बोहलोल साहिब इस क़द्र गहरी नींद में थे के उन्हें शेख़ साहिब और उनके मुरीदों के क़दमों की आवाज भी सुनाई नहीं दी। शेख़ साहिब ने पास पहुंच कर बड़े अदब से सलाम अर्ज किया। हज़रत बोहलोल साहिब नाचीज का सलाम क़ुबूल फ़रमाइये। बोहलोल साहिब ने आंखें खोली और सलाम का जवाब दिया। और बोले जनाब आप कौन हैं। हुज़ूर मैं जुनैद बग़दादी हूँ। शेख़ साहिब ने अपना तअर्रूफ़ कराया। अच्छा तो आप लोगों को रूहानी तालीम देते हैं। जी कोशीश कर लेता हूँ। बोहलोल साहिब...

Behlol dana aur rab se sulah

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            25. बोहलोल साहिब और बंदो की रब से सुलह  एक बार बोहलोल साहिब बगदाद की मस्जिद के बाहर अपनी ही मौज में बैठे हुए थे वहां बैठ कर पर मिट्टी पर एक लकीर खींचते और उसे चार लकीरों से काट देते पास खड़ा एक सौदागर यह सारा नजारा देख रहा था उसने बोहलोल साहिब के पास जा कर पूछा बोहलोल साहिब आप यह क्या कर रहे हैं जवाब आया बंदो की और रब की सुलह करवा रहा हूँ पर बात नहीं बन रही क्यों जवाब आया रब तो मान रहा है पर बंदे नहीं मान रहे में क्या करूँ। वह सौदागर बोहलोल साहिब को उनके हाल पर छोड़ अपने काम में मसरूफ हो गया। समय बीता बोहलोल साहिब कब्रिस्तान फिर अपनी ही मौज में बैठे हुए थे अब वह मिट्टी पर चार लकीरें खींच कर उसे एक लकीर से काट रहे थे। इत्तेफाक से वही सौदगार वहां से गुजरा उसने फिर बोहलोल साहिब के पास जा कर पूछा बोहलोल साहिब आज आप यहां क्या कर रहे हैं जवाब आया बंदो की और रब की सुलह करवा रहा हूँ पर बात फिर नहीं बन रही अब क्यों नहीं बन रही अब बंदे तो मान रहे हैं पर खुदा नहीं मान रहा।          

Behlol dana aur najumi

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                   24.बोहलोल साहिब और नजूमी एक बार हारून के दरबार में यूनान का बहुत ही प्रसिद्ध  नजूमी तशरीफ लाया और बहुत ही जल्द इसन अपने ईलम के दम पर सबको प्रभावित कर लिया पूरे बगदाद में इसका नाम हो गया बगदाद के बड़े बड़े व्यापारी सुबह से कतार में लग इससे अपना मुस्तकबील जानने को बेकरार होने लगे। एक रोज यह नजूमी रात के चौथे प्रहर में तड़के सितारों की गणना करते करते विराने में टूटे हुए एक पुराने कुंए में जा गिरा इत्तेफाक से बोहलोल साहिब वहीं खुदा की इबादत में मशगूल थे इसकी बचाओ बचाओ की आवाज सुन वह दोड़कर कुंए के पास पहुंचे और जैसे तैसे उन्होंने बड़ी मुश्किल से इसे बाहर निकाला इसने बोहलोल साहिब का बहुत शुक्रीया अदा किया और अपना तआरुफ़ कराते हुए कहा ए भले इंसान में यूनान का बहुत बड़ा नजूमी हूँ बड़े बड़े लोग मुझसे मिलने को बेकरार रहते हैं में बादशाह का खास महमान हूँ और कुछ दिनों के लिए महल में ठहरा हुआ हूँ मुझ से वहां जरूर मिलने आना में तुमको तुम्हारा मुस्तकबिल बताऊंगा वो भी एक दम मुफ्त अच्छा अब मुझे इजाजत दो में चलता हूँ  लोग मुझसे म...

Behlol dana aur sahi aur galat ki pehchan

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  23.बोहलोल साहिब और गलत तथा सही काम की पहचान   एक बार बोहलोल साहिब अपनी ही मस्ती में गुम दरिया किनारे बैठे हुए थे कि एक मुरीद उनके पास आ पहुंचा और बोला ए दरवेश इंसान मुझे नसीहत त कर कि में कैसे फरक करूँ कि कौनसा काम अच्छा है और कौन सा काम बुरा, कि कौन सा काम नेक है और कौन सा काम गलत। बोहलोल साहिब ने झट से जवाब दिया और कहा ए अक्लमंद इंसान किसी भी काम को करते वक्त बस तूॅ सिर्फ इतना सोचा कर यदि इस काम को करते वक्त मेरी जान निकल जाए तो मुझे जन्नत नसीब होगी या मुझे जहन्नुम आग में जलना होगा। बस इस तरह तूं आसानी से अच्छे या बूरे काम में फरक कर सकता है ।

Behlol dana aur pule sirat

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                                        22. बोहलोल साहिब और पुले सिरात  एक रोज़ हारून का काफिला कब्रिस्तान की तरफ से गुज़र रहा था कि अचानक हारून की नजर दूर बैठे बोहलोल साहिब पर पड़ी उसने सवारी को ठहरने का हुक्म दिया और वह सवारी से नीचे उतर कर बोहलोल साहिब से मिलने पहुंचा ओर बोला। वाहब साहिब आप यहाँ क्यों बैठे रहते हैं। इस पर बोहलोल साहिब ने बड़ी संजिदगी से बोले यहां ऐसे लोग बसते हैं जो ना तो दूसरों को कोई तकलीफ देते हैं और ना ही दूसरे की ग़ीबत करते हैं और यह लोग मुझ से भी ऐसी ही उम्मीद रखते है इसलिए मुझे इनके पास बैठने से सकूँन मिलता है और में अक्सर यहां बैठने आ जाता हूँ। हारून ने गहरी साँस ली और बोला वाहब साहिब क्या आप मुझे पुले सिरात के बारे में कुछ बता सकते हैं और उस पर से कौन गुजर पाएगा और कौन नहीं जी जरूर जितना क मुझे पता है पुले सिरात जहन्नुम कि आग पर बना एक अदृश्य रास्ता है जिस तक केवल और केवल  ईमान वाले और नेक लोग ही पहुंच पाएंगे। वहां बहुत अंधेरा होगा किसी को कुछ...

Behlol dana aur badshaha

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              21. बोहलोल साहिब और बादशाह  एक रोज़ हारून जंगल में शिकार खेलने निकला तो बोहलोल साहिब भी साथ हो लिए उसका मन तालाब में नहाने का हुआ। वह जैसे ही तालाब से नहाकर बाहर ही निकला उसने मज़ाक़ में कहा वाहब साहिब अगर में कोई ग़ुलाम होता तो मेरी क्या क़ीमत लगती। बोहलोल साहिब ने भी बहुत मज़े से कहा। आलीजाह। सिर्फ पांच दीनार। यह सुन सभी हसने लगे। सिर्फ पांच दीनार इस बेइज्जती की हारून को उम्मीद नहीं थी। उसका मिजाज बिगड़ा और वह बोला हो न तुम दीवाने। इंसान की क़द्र व क़ीमत का तुम्हें अन्दाज़ा ही नहीं। अहमक़ जानते हो के यह जो मैंने जूतियां पहन रखी है। पांच दीनार तो सिर्फ़ इन्ही की कीमत है। मेरे हुजूर मैने भी तो सिर्फ़ जूतियों की ही क़ीमत लगाई है।   वरना सरकार आप की तो कोई क़ीमत नहीं है। यह सुन फिर सभी लोग जोर जोर से हँसने लगे। हारून का पारा चढ़ने लगा यह देख बोहलोल साहिब ने जान बचाने के लिए मुस्कराते हुए कहा हुजूर आप तो अनमोल हैं।

Behlol dana aur mehfile sharab

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           20. बोहलोल साहिब और शराब की महफिल  एक मरतबा हारून ने शराब की महफ़िल सजा रखी थी वज़ीर अमीर बैठे थे हारून कनीज़ो के हाथों से शराब के जाम लेकर घटा घट पी रहा था के बोहलोल साहिब अचानक महफिल में आ पहुँचे उन्होंने हारून की तरफ ख़ामोश निगाहों से देखा तो हारून को नजरें मिलाते ही इस्लाम की नसीहतें याद आने लगी पर नशे कि हालत में उसने खुद को जैसे तैसे संभाला  इससे पहले के बोहलोल साहिब बादशाह को कोई ऐसी वैसी  बात कहें जिससे भरी महफिल में उनका सर नीचा हो पास बैठे वजीर ने तुरंत बोहलोल साहिब की तरफ देखा और बोला वाहब साहिब क्या आप मेरे एक सवाल का जवाब देना पसंद करेंगे जी हुजूर पुछीए मैं तैयार हूँ। बोहलोल ने जवाब दिया। वाहब साहिब यह बताएँ के अगर कोई शख़्स महफिल में बैठ कर अंगूर खाए तो क्या यह हराम है। नहीं। बिल्कुल नहीं। अच्छा तो यदि वह अगूंर खाकर ऊपर से पानी पी ले तो क्या  अब यह हराम है। जी बिल्कुल नहीं अब यही शख़्स अगूंर खाने और पानी पीने के बाद यदि धूप में बैठ जायें तो फिर क्या उसका धूप में बैठना हराम होगा। जी बिल्कुल नहीं वह शख्स...

Behlol dana aur zindagi ki haqeeqat

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             19. बोहलोल साहिब और जिंदगी की हकीकत   एक बार हारून रशीद बहुत ही गमजदा हालात में अपने महल में बैठा था कि तभी अचानक बोहलोल साहिब की आमद हुई। हारून रशीद ने बोहलोल साहिब का स्वागत किया और उन्हें अपने पास बैठाया बातों ही बातों में हारून ने बोहलोल साहिब से पूछा जीवन की वास्तविक हकीकत क्या है। इस पर बोहलोल साहिब ने बड़ी संजिदगी से उसे एक वाक्या सुनाया कि एक बार   जंगल  पार करते समय किसी शख्स के पीछे शेर  पड़ जाता है और वह शख्स अपनी जान बचाने के लिए भागता है तभी उसे सामने एक  कुंआ  नजर आता है वह उसमें टंगी  रस्सी  के सहारे कुंए में लटक जाता है पर जब वह नीचे देखता है तो उसे मालूम पड़ता है कि कुंए का पानी मरे हुए जानवरों की लाशो से जहरीलाा हो चुका है इतने में उसकी नजर कुंए में लगे  शहद के छत्ते  पर पड़ती है जिससे वह थोड़ा शहद उंगली से निकाल कर खाने लगता है तभी उसे  मधुमक्खियां  एक दो जगह  डंंक   भी मारती हैं पर शहद के आन्नद में वह भूल जाता है कि मौत उसके सर पर खड़ी है और इ...

Behlol dana aur bakriyon ka batwara

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               18. बोहलोल साहिब और 5 बकरियों का बटवारा  बगदाद में एक बुजुर्ग व्यक्ति के पास 5 बकरियां थी उसके दो लड़के थे। जब उस बुजुर्ग के इंतकाल के बाद जब उसकी वसीयत पढ़ी गयी तो उसमें लिखा था कि मेरे मरने के बाद मेरी 5 बकरियों में से आधी मेरे बड़े बेटे को तथा एक तिहाई मेरे छोटे बेटे को दे दी जाए। पर इस बात का ध्यान रखा जाए किसी भी बकरी को कोई नुकसान ना पहुंचे उन्हें किसी भी सूरत ए हाल में मारा ना जाए इन्हें जिंदा ही दोनों में तकस्मि किया जाए। पूरे बगदाद की आवाम चक्कर में पड़ गई थी कि आखिर यह बँटवारा होगा कैसे क्योंकि  5 बकरिया में से आधी बड़े बेटे को मतलब कि 5/2 = 2.5 मतलब की एक बकरी को मारकर दो हिस्सों में बाटना पड़ेगा और दूसरी तरफ 5 का 1/3 = 1.6 छोटे बेटे को मतलब कि एक बकरी को फिर काटना पड़ेगा, फिर दुबारा  एक बकरी को मारना पढ़ेगा। यदि दोनों भाई रजामंदि से एक बकरी काजी को भी दे देते हैं तो 4 क आधा=2 तथा 4 का 1/3 = 1.3 फिर एक बकरी को मारना पढ़ेगा। सब बड़ी उलझन में थे। बगदाद के सारे काजी हार मान बैठे थे। तभी वहां बोहलोल साह...

Behlol dana aur karobar ka mashwara

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           17. बोहलोल साहिब और व्यापार का मशविरा  बोहलोल साहिब की दानशमंदी की हवा चारों तरफ फैलने लगी तो एक मगरूर सौदागर उनके पास आया और बोला हज़रत शेख़ बोहलोल साहब मेहरबानी फ़रमाकर मुझे मशविरा दें कि मैं कौन सा व्यापार करूँ जो नफ़ा बख़्श हो। बोहलोल साहिब ने बड़े इत्मीनान से कहा जनाब आप लोहा और रूई का व्यापार करें अल्लाहताला बरकत देगा।  मगरूर सौदागर ने बोहलोल साहिब की बात पर अमल किया और उसे बहुत ज़्यादा मुनाफ़ा हुआ। दो ढाई माह बाद उस मगरूर संदागर ने फिर माल ख़रीदने का इरादा किया तो उसने सोचा क्यों ना फिर से बोहलोल साहिब से मशविरा ले लिया जाए। वह उनके पास आया और बड़े गरूर से बोला ओ दीवाने पिछली दफा तुम्हारी सलाह से मुझे काफी मुनाफा हुआ था इस बार बेचने के लिये कौन सा माल ख़रीदूँ। बोहलोल साहिब फ़ौरन बोल उठे जा तूॅ प्याज़ और तर्बूज़ का व्यापार कर। उस मगरूर सौदागर ने बग़ैर सोचे समझे अपना तमाम सर्माया प्याज़ तर्बूज़ ख़रीदने में लगा दिया। फ़सल अधिक होने कारण के वैसे ही उनकी माँग गिर गई थी। कुछ दिन भण्डार पड़ा रहा तो वह सड़ गये और उसे नुकसान...

Behlol dana aur naik kamai

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           14. बोहलोल साहिब और नेक कमाई की बरकत एक बार बोहलोल साहिब अपनी छड़ी पर सवार हो बगदाद के बाजार में घुम रहे थे कि वहां दो मांगने वाले आए तो बाजार के एक बड़े यहूदी व्यापारी ने उन्हें काफी पैसे खैरात में दिए कुछ देर बाद फिर बाजार मे एक और मांगने वाला आया तो एक साधारण व्यापारी ने उसे थोड़े से ही पैसे खैरात में दिए। बच्चों से घिरे हुए अपने घोड़े पर सवार थोड़ी दूर खड़े बहलोल साहिब यह सारा नजारा बढ़ी संजिदगी से देख रहे थे तभी उन्होंने उस यहूदी व्यापारी को बाद में मांगने आने वाले के पीछे और साधारण व्यापारी को उन दोनों मांगने वालों के पीछे भेजा। यहूदी और वह साधारण व्यापारी जब वापिस आए तो साधारण व्यापारी ने आकर बताया कि उन दोनों व्यक्तियों ने तो मांगे हुए पैसो से खुब अय्याशी की तथा यहुदी ने बताया उस बाद में मांगने आने वाले व्यक्ति ने जरूरी रसद खरीदी और अपने घर ले गया। तभी यहुदी ने पूछा आखिर ऐसा क्यों हुआ कि उन दोनों ने खैरात के पैसों से अय्याशी की और जबकि दूसरे ने जरूरी चीजों को खरीदा तो बोहलोल साहिब  ने जवाब दिया सुन यहूदी तूँ ब्याज पर पैसा देता है त...

Behlol dana aur asmani farishta

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                 13. बहलोल साहिब और आसमानी फरिश्ता   एक बार बोहलोल साहिब जंगल में अपनी दो बकरियां चरवाने गऐ तो वह जब पेड़ के नीचे बैठ कर दो घड़ी खुदा की इबादत कर रहे थे। तभी वहां एक आसमानी  फरिश्ता  आ पहुंचा बोहलोल साहिब ने उसे प्यासा जान पानी पीने को दिया तो उसने शुक्रिया अदा करते हुए पानी पीया तब बोहलोल साहिब ने उस फरिश्ते से पूछा जनाब आपके पास यह किताब कैसी तब फरिश्ते ने जवाब दिया ऐ खुदा के नेक बंदे यह एक  रूहानी किताब  है इसमें उन लोगों के नाम है जो  रब को याद करते हैं उसे मानते हैं।  इस पर फरिश्ते ने कहा भला देखें तो सहीं शायद इसमें तुुम्हारा नाम भी हो बोहलोल फरिश्ते ने सारी किताब बड़ी गौर से पड़ी पर उसने मायूस होकर कहा माफ करना बोहलोल साहिब इसमें आपका नाम नहीं है और वह बोहलोल साहिब को अलविदा कह अपनी मंंजिल की तरफ कूच कर गया। इस वाक्य से बहलोल साहिब बिल्कुल भी मायूस नहीं हुए वह जानते था कि उन्हें जब भी अपने कामों के बीच में थोड़ा सा समय मिलता है वह तो तभी रब का नाम लेते हैं पर कई दरवेश तो दिन रात रब क...

Behlol dana ka insaaf

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                      16. बोहलोल साहिब का इंसाफ एक बार बग़दाद का एक शरीफ़ सौदगर अजीब मुश्किल में गिरफ़्तार हो गया। वह बहुत कम मुनाफ़े पर माल बेचता था। इसलिए शहर में हर दिल अज़ीज था इसी कारण एक दूसरा यहूदी कारोबारी उससे जलता था और मौक़े की तालाश में था के इस शरीफ सौदागर को कोई नुकसान पहुँचा सके यहूदी शहर में सूद पर रूपया भी चलाता था कुछ मुद्दत गुज़री कि उस शरीफ़ सौदागर को कुछ पैसो की ज़रूरत आन पड़ी उसने उस यहूदी से कुछ क़र्ज़ माँगा तो वह पैसे देने को फौरन तैयार हो गया लेकिन उसने एक निराली शर्त रखी के अगर सौदागर तय वक़्त पर उसका क़र्ज़ अदा न कर सका। तो वह उसके बदले उसके जिस्म के जिस हिस्से से चाहेगा एक सेर गोश्त काट लेगा। सौदागर मजबूर था इसलिए उसने मजबूरन यह शर्त मान ली और पक्के दस्तावेज़ लिखकर यहूदी के हवाले कर दिए। इत्तेफ़ाक से ऐसा हुआ के वह सौदागर वक़्ते मुक़र्ररह पर क़र्ज़ अदा नहीं कर सका। तो यहूदी ने फ़ौरन मुक़द्दमा दायर कर दिया क्योंकि उसके पास सौदागर के हाथ की लिखी हुई दस्तावेज़ मौजूद थी। इसलिये क़ाज़ी को फ़ैसला यहूदी के ह...

Behlol dana aur jannat kay mahal

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             15.बोहलोल साहिब और जन्नत के महल हारून की चहिती मलिका ज़ुबैदा अपने शानदार महल की ख़िड़की में से बाहर का नज़ारा देख रहीं थी कि तभी उसने दरिया के किनारे बोहलोल साहिब को बैठे हुए देखा वह बच्चो की तरह रेत से खेल रहे थे। ज़ुबैदा कुछ देर उनका यह खेल दिलचस्पी से देखती रही फिर अपनी चन्द कनीज़ो के साथ बाहर आयी और बोहलोल साहिब के पास आकर खड़ी हो गई और उनसे पूछा बोहलोल साहिब आप यह क्या कर रहे हैं। बोहलोल साहिब ने जवाब दिया मलिका यह मैं जन्नत के महल बना रहा हूँ। इतना कहकर वह फिर अपने काम में मसरूफ़ हो गए। ज़ुबैदा कुछ देर सोच कर बोली बोहलोल साहिब क्या आप इन महलों को बेचोगे भी ? जी हाँ जरूर कितने में ज़ुबैदा ने पूछा सिर्फ़ दो दीनार में एक महल ज़ुबैदा ने तुरंत दो दीनार बोहलोल साहिब को अदा कर दिए उन्होंने एक रेत के घर को तोड़ते हुए कहा लो मलिका यह महल तुम्हारा हुआ। ज़ुबैदा ने यह सब बात जब बादशाह हारून को बताई तो वह हँसकर बोला आखिर कार उस दीवाने ने तुम्हें भी दीवाना बना दिया ठीक है अब मुझे सोने दो रात को जब बादशाह की आँख लगी तो उसने देखा के वह एक ...

Behlol dana aur badshahat ki kimat

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              12.बोहलोल साहिब और  बादशाहत की कीमत   एक बार हारून ने बोहलोल साहिब को महल में बूलवाया और कुछ  देर खामोश रहने के बाद गिला करते हुए कहा बोहलोल साहिब आपकी वजह से शाही ख़ानदान को किस क़द्र ज़िल्लत उठानी पढ़ रही है। आपको इस बात का कुछ अन्दाज़ा भी है। सब जानते है के आप हमारे रिश्तेदार हैं और आप दीवाने बन कर जगह-जगह घुमते फिरते हैं कुछ नहीं तो हमारे रूतबे का तो ख्याल रखिए। बोहलोल साहिब ने सर उठाया और बोले बादशाह सलामत अगर आप किसी जंगल बियाबान में रास्ता भटक जायें और प्यास से दम निकल रहा हो पर आपको कहीं पानी न मिले और थोड़ी दूर कोई पानी बेचने वाला हो तो आप उसे एक घुंट पानी के बदले में कितने पैसे देने को तैयार हो जाएंगें। अजीब दीवाने हो वाहब साहिब भला इस वक़्त इसका क्या ज़िक्र हारून ने ना-गवारी से कहा। बोहलोल साहिब ने हँसते हुए कहाँ मेरी बात का जवाब तो दीजिए हुजूर बादशाह ने कहा उस वक्त मेरे पास जो भी मालो दौलत होगा वह सब में दे दूँगा। हारून ने बेपरवाई से जवाब दिया। अगर पानी का मालिक इस क़ीमत पर राज़ी न हो तो फिर बोहलोल ने पू...

Behlol dana aur badshah ka takht

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          11. बोहलोल साहिब और बादशाह का तख्त एक मरतबा बोहलोल साहिब का रूख़ हारून के दरबार की तरफ था। उन्होंने गंदे कपड़े पहन रखे थे। कंधे पर गुदड़ी थी और हाथ में छड़ी दरबान को मालूम था कि वह हारून के रिश्तेदार हैं इसलिये उसने उन्हें अन्दर जाने दिया। बोहलोल साहिब अपनी फटी हुई जूतियों को चटखाते हुए बड़ी तेजी से अन्दर दाखिल हुए। दीवाने ख़ास में पहुँचकर उन्होंने देखा की वज़ीरों की कुर्सीयाँ भी ख़ाली पड़ी हैं। शायद अभी दरबार चालू नही हुआ था। आप क़ीमती क़ालीन को रौंदते हुए बादशाह के तख्त पर जा बैठे और मज़े से उस पर बिराजमान हो गए। अभी आपको बैठे हुए चन्द लम्हे भी ना गुजरे थे कि दरबार के पहरेदार दौड़ते हुए आये और उन्होंने बोहलोल साहिब के दामन से पकड़ कर जोर से नीचे ख़ींचा और उन्हें तख्त से नीचे गिराकर दो तीन कोड़े भी रसीद कर दिए। ओ दीवाने। तेरी यह जुर्रत के तूं बादशाह के तख्त पर बैठे। हाय रे मर गया बोहलोल साहिब बुलन्द आवाज़ में तेजी से रोने लगे। उसी वक़्त हारून बादशाह दीवाने ख़ास में दाखिल हुए। उन्होंने बोहलोल साहिब को इस तरह रोते चिल्लाते और फर्याद करते देखा तो है...

Behlol dana aur rab say milnay ka tariqa

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                    10. खुदा से कैसे मिला जा सकता है  एक रोज बोहलोल साहिब बादशाह के महल के पास अपनी ही मस्ती में गुम बैठे थे तभी महल के ऊपर से बादशाह की नजर उन पर पढ़ी उन्होंने अपने सिपाहियों को बोहलोल साहिब को ऊपर उठा कर लाने का इशारा किया तो वह तुरंत सोते हुए बोहलोल साहिब को बादशाह के सामने उठा लाए। बोहलोल साहिब ने होश संभाला तो खुद को बादशाह के सामने पाया। बादशाह ने पूछा कैसे मिजाज है आपके वाहब साहिब उन्होंने जवाब दिया अल्लाह का फजल है बादशाह ने कुछ देर बातें करने के बाद बड़ी ही संजिदगी से पूछा एक बात तो बताएँ वाहब साहिब खुदा से कैसे मिला जा सकता है। बोहलोल साहिब ने थोड़ी देर खामोश रहकर मुस्कराते हुए जवाब दिया बिल्कुल ऐसे ही जैसे में आप से मिल रहा हूँ । आप ने मुझे याद फरमाया तो आपके सिपाही मुझे उठा कर आपके पास ले आए ठीक इसी तरह खुदा भी जिनको याद फरमाते है खुदा के फरिश्ते भी उन्हें खुदा के पास उठा कर ले जाते हैं। हम अपनी मर्जी से खुदा को नहीं मिल सकते आप तो जानते ही हैं अगर बादशाहो से मिलना हो तो पहले अर्जी लिखनी पढ़...

Behlol dana ka qazi ko pathar marna

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                   9. बोहलोल साहिब का अबु हनीफा को पत्थर मारना हारून ने एक बार अपने एक कारिन्दे को बोहलोल साहिब की तलाश में रवाना किया बोहलोल साहिब उन्हें कहीं भी नहीं मिले न वह उस वीरान खण्डर में थे जो उनका बसेरा था और न ही वह कब्रिस्तान में थे जहाँ वह अक्सर व बेश्तर किसी सोच में डूबे बैठे रहते थे किसी ने बताया के उन्हें  मस्जिद की तरफ़ जाते हुए देखा गया है। कारिन्दा भी मस्जिद की तरफ चल पड़ा अभी वह रास्ते में ही था के उसने देखा के बोहलोल साहिब जूतों को बग़ल में दबाए गिरते पड़ते तेजी से मस्जिद से बाहर निकले और भागने लगे। उनके पीछे से आवाजे आने लगी पकड़ो पकड़ो देखो जाने न पाए पकड़ो इस गुस्ताख को पकड़ो कुछ नौजवान उनके पीछे भागने लगे। लड़कों ने उन्हें घेर कर धर दबोचा और उनकी ठुकाई करने लगे। हारून का कारिन्दा दौड़कर क़रीब पहुँचा और बीच बचाओ कराते हुए बोला बात सुनो लड़कों यह एक दीवाना है और खलिफा का रिश्तेदार भी बेहतर होगा कि तुम लोग कानून अपने हाथ में ना लो और इन्हें काजी जी के पास ले चलो वही इनकी सजा तय करेंगे। बात लड़कों की समझ...

Behlol dana aur baiimaan qazi

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                             8.बोहलोल साहिब और बईमान काजी बोहलोल साहिब कहीं जा रहे थे राह चलते उन्होंने दो बच्चो को रोते और फ़रियाद करते देखा वह उनके सामने रूक गए और उनके सर पर हाथ फेरते हुए बोले। क्या हुआ प्यारे बच्चों तुम क्यों रो रहे हो। बड़ा लड़का बोला। हम फ़लाँ शख़्स के बेटे हैं। हमारे पिता जी ने हज पर जाने से पहले एक हज़ार अशर्फि क़ाज़ी के पास ब-तौर अमानत रखवाई थी और कहा था के ज़िन्दगी मौत का कोई भरोसा नहीं। अगर मैं सफरे हज से वापिस न आया तो तुम मेरे बच्चो को उसमें से जो तुम्हारा दिल चाहे दे देना और अगर ख़ुदा मुझे वापिस ले आया तो मैं अपनी अमानत तुमसे वापिस ले लूँगा। मगर अफसोस के हमारे पिता जी का शायद इंतकाल हो गया है उधर क़ाजी बईमान हो गया है और हम यतीम और बेआसरा हो गये हमने जब अपने पिता जी की अमानत क़ाज़ी से माँगी तो वह कहने लगा कि तुम्हारे पिता जी ने मेरे साथ जो क़ौल किया था। उसके मुताबिक़ जो मेरा दिल चाहेगा। वह तुम्हे दूँगा। इस लिए यह सौ अशर्फिया ले जाना चाहो तो ले लो वरना फूटो यहां से उसने उन लोगो...

Behlol dana aur sonay ka sikka

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                                     7.बोहलोल साहिब और सोने का सिक्का शाही परिवार से तालुक रखने वाले बोहलोल साहिब एक सोने के सिक्के से बच्चों की तरह खेल रहे थे। कभी वह उसको उंगली पर नचाते था तो कभी पहिये की तरह घुमाते। एक सुनार उनका यह खेल देख रहा था। उसने उन्हें पागल समझ कर कहा। तुम्हे इस एक सिक्के से खेलने में मज़ा तो नहीं आ रहा होगा। तुम यह सिक्का मुझे दे दो। मैं इसके बदले में तुम्हे दस सिक्के दूँगा। उसने जेब से सिक्के निकाल कर बोहलोल साहिब को दिखाये। ठीक है। मैं यह सिक्का तुम्हे अभी दे देता हूँ मगर एक है।  बोहलोल साहिब ने कहा। वह क्या। सुनार ने पूछा पहले आप मुझे गधे की तरह ढ़ीचूँ ढ़ीचूँ की आवाज़ निकाल कर दिखाए   बोहलोल साहिब ने कहा। उस धोखेबाज़ ने सोचा कि इस दीवाने के सामने गधे की आवाज़ निकालने में क्या हर्ज है। इस लिये वह शुरू हो गया और गधे की तरह रेंकने लगा। बोहलोल हसाँ। अजब गधे हो भाई। तुमने मेरे सोने के सिक्के को फौरन पहचान लिया और मैं गधा भी नहीं। तो भला मैं तु...

Behlol dana aur nanbai

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             6.बोहलोल साहिब और  ढाबे वाला (नानबाई) बग़दाद के बड़े बाजार में नानबाई ने तरह-तरह के खाने चुल्हो पर चढ़ा रखे थे। ज़िससे भाँप निकल रही थी। उन खानो की खुशबू उन खानो की लज़्जत का पता दे रही थी और इर्द-गिर्द गुज़रने वालो को अपनी तरफ खींच रही थी एक फकीर वहां से गुजर रहा था उसका दिल भी खानों की इस खुशबू से ललचा गया। फकीर के पास इतने पैसे कहाँ थे जो इन खानो का लुत्फ उठा सकता। मगर वहाँ से हटने को भी उसका दिल नहीं चाह रहा था। खानो की खुश्बू उसकी भूक बड़ा रही थी। आख़िर कार उसने अपने थैले में से सूखी रोटी निकाली और खाने की देग़ की भाँप से नर्म करके उसे खाने लगा , जिसमें खाने की ख़ुश्बू बसी हुई थी। नानबाई चुपचाप यह तमाशा देखता रहा। जब फकीर की रोटी ख़त्म हो गई और वह चलने लगा। तो नानबाई ने उसका रास्ता रोक लिया। क्यों ओ मुस्टण्डे कहाँ भागा जा रहा है। ला मेरे पैसे निकाल। कौन से पैसे फकीर ने हैरान  हो कर पूछा। अच्छा बेटा कौन से पैसे ? अभी जो तूने मेरे खाने की भाँप के साथ रोटी खाई है। वह क्या तेरे बाप की थी। उसकी क़ीमत कौन चुकायेगा अजीब इ...

Behlol Dana aur Daroga

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                            5.बोहलोल साहिब और बेवकूफ दरोग़ा एक रोज़ बोहलोल साहिब बच्चों के    साथ भागे जा रहे थे के उन्होंने बाज़ार में मजमा लगा हुआ देखा तो वहीं रूक कर आगे बढ़कर तमाशा देखने लगे। लोगो ने उन्हें धक्के देकर पीछे किया। बुरा-भला कहा लेकिन उन्होंने परवाह नहीं की और देखा के शहर का दरोग़ा एक अजीब दावा कर रहा है। ऐ लोगो मेरी बात गौर से सुनो मैं एक ऐसा होशियार आदमी हूँ के मुझे कोई बेवकूफ नहीं बना सकता। बेशक बेशक। दरोग़ा जी आप बिल्कुल दुरूस्त फ़रमाते हैं। मर्हबा-मर्हबा क्या कहने। दरोग़ा साहिब का दावा बिल्कुल दुरूस्त है किसी की क्या मजाल के साहिब को कोई बेवकूफ बना सके। मजमे में से उसके ख़ुशाम्दी तरह-तरह की बोलियाँ बोलने लगे। हर तरफ से दाद दी जाने लगी। बोहलोल साहिब ने अपनी छड़ी ज़मीन पर ज़ोर से मारते हुए उनका ध्यान  अपनी तरफ खींचा और बोले। दरोग़ा जी मुझे भी कुछ कहने की इजाज़त दी जाए। अच्छा। तुम भी बोलोगे। बोलो क्या कहते हो उसने जोश से कहा बोहलोल साहिब ने सन्जीदगी से कहा। दरोग़ा जी ग़ुस्...

Behlol dana aur beti ki paidaish par gam

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                    4.बोहलोल साहिब और बेटी की पैदाइश का गम  उन ही दिनो एक नामी अमूक शख्स  के यहाँ लड़की पैदा हुई। बोहलोल साहिब को जब पता चला के वह लड़की की पैदाइश पर खुश नहीं है। तो वह अपनी गुदड़ी कंधे पे डाले खुद ही उसके यहाँ पहुंच गए। भाईजान मैंने सुना है के आप लड़की की पैदाइश पर बहुत दुखी है। खाते है न पीते है और किसी से बात भी नहीं करते। क्या करूँ भाई  दिल ही नहीं लगता। वह ठन्डी साँस भर कर बोला। मुझे बेटे की बड़ी आरज़ू थी। मगर अफसोस के अल्लाह ताला ने मुझे लड़की दे दी। कमाल है भाई आप इस पर राज़ी नहीं के अल्लाह ने आपको कितनी प्यारी फूल सी बेटी दी है अगर वह आपको  मुझ जैसा पागल बेटा दे देता तो फिर क्या करते। उस शख्स को बोहलोल साहिब कि इस बात पर हँसी आ गई। लेकिन वह इसकी तह में छिपे हुए सबक को जान गया और ख़ुदा का शुक्र करने लगा उसने अपना सोग तोड़ा और लोगों से गिला किया के वह उसके पास मुबारक बाद पेश करने के लिये क्यों नहीं आते।

Behlol dana aur ghatiya insaan

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           3.बोहलोल साहिब और एक चालाक इंसान   एक बार आप दीवानगी के आलम में कहीं जा रहे थे तो एक चालाक शख़्स ने आपका मज़ाक उड़ाने की शरारत से कहा। बोहलोल साहिब क्या तुमने कभी किसी पागल को देखा है। मेरा बहुत जी चाहता है कि मैं किसी पागल से मिंलू हजरत आपकी यह ख़्वाहिश तो बड़ी आसानी से पूरी हो सकती है। बोहलोल साहिब ने बड़ी ही सन्जीदगी से जवाब दिया। वह किस तरह उस शख़्स ने पूछा। आपके के घर में आईना तो होगा ही उसमें अपने हसीन चेहरे को देखिएगा। आपको की पागल की ज़ियारत हो जायेगी लोग हँसने लगे और वह घटिया शख्स इतना सा मूंह बनाकर रह गया।

Behlol dana aur falsafa ki kitab

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                         2.बोहलोल साहिब और फलसफे की किताब  बोहलोल साहिब अपनी दीवानगी के आलम में भी पक्के नमाजी थे। वह नमाज़ के वक़्त हर हाल में मस्जिद में पहुँच जाया करते थे। एक रोज़ अभी आप ने अपने जूते मस्जिद के बाहर उतारे ही थे कि आपकी निगाह एक शख्स पर पड़ी वह शक्ल से ही चोर लग रहा था। बोहलोल साहिब बहुत देर इस इंतज़ार में थे कि वह शख़्स इधर उधर हो तो वह अपने जूते उतार कर नमाज़ मे शामिल हो। मगर वह शख्स वहीं डट कर खड़ा था। इस पर बोहलोल साहिब ने तेजी से नजर बचाकर अपने जूतों को एक थैले में डालकर अपनी बग्ल में दबा लिया और  दौड़कर नमाज़ के लिये खड़े हो गए। नमाज के बाद एक नमाजी बोला मालूम होता है के आपके पास कोई क़ीमती किताब है जिसे आपने इतनी हिफाज़त से अपनी बग्ल में रखा हुआ है। बोहलोल साहिब ने बड़ी सन्जीदगी से जवाब दिया जी बिल्कुल आप ने एक दम दुरूस्त फरमाया बहुत ही क़ीमती किताब है इस थैले में उस शख़्स ने कहा:  क्या आप बताना पसन्द करेंगे कि यह कौन-सी किताब है। जी हाँ। क्यों नहीं। यह फलसफे की किताब है। बोह...