15.बोहलोल साहिब और जन्नत के महल
हारून की चहिती मलिका ज़ुबैदा अपने शानदार महल की ख़िड़की में से बाहर का नज़ारा देख रहीं थी कि तभी उसने दरिया के किनारे बोहलोल साहिब को बैठे हुए देखा वह बच्चो की तरह रेत से खेल रहे थे। ज़ुबैदा कुछ देर उनका यह खेल दिलचस्पी से देखती रही फिर अपनी चन्द कनीज़ो के साथ बाहर आयी और बोहलोल साहिब के पास आकर खड़ी हो गई और उनसे पूछा बोहलोल साहिब आप यह क्या कर रहे हैं।
बोहलोल साहिब ने जवाब दिया मलिका यह मैं जन्नत के महल बना रहा हूँ। इतना कहकर वह फिर अपने काम में मसरूफ़ हो गए। ज़ुबैदा कुछ देर सोच कर बोली बोहलोल साहिब क्या आप इन महलों को बेचोगे भी ?
जी हाँ जरूर
कितने में ज़ुबैदा ने पूछा
सिर्फ़ दो दीनार में एक महल
ज़ुबैदा ने तुरंत दो दीनार बोहलोल साहिब को अदा कर दिए उन्होंने एक रेत के घर को तोड़ते हुए कहा लो मलिका यह महल तुम्हारा हुआ।
ज़ुबैदा ने यह सब बात जब बादशाह हारून को बताई तो वह हँसकर बोला आखिर कार उस दीवाने ने तुम्हें भी दीवाना बना दिया ठीक है अब मुझे सोने दो रात को जब बादशाह की आँख लगी तो उसने देखा के वह एक ऐसे ख़ुशनुमा बाग़ में है। जिसकी खुबसुरती को ब्यान करना भी मुश्किल है रू-ए-ज़मीन पर उसकी कोई मिसाल नही हो सकती। वह हैरान नज़रो से उस बाग को देखता रह गया उसने आहिस्ता आहिस्ता क़दम उठाये और हर लहज़ा हैरत में डूबता चला गया। उसके चारों तरफ़ खुबसुरत महल ही महल थे जिन के दर व दीवार में जड़े हीरे जवाहरात निगाहों को ठंडा कर रहे थे उन महलो के दरवाजो पर उनके मालिकों के नाम सोने की तख्ती पर लिखकर टंगे हुए थे अचानक उसकी नजर एक आलिशान महल पर पढ़ी जिस पर उसकी मलिका जुबेदा का नाम लिखा हुआ था उसने अंदर जाना चाहा तो पहरेदारों ने उसे रोक दिया उसने लाख समझाया कि यह उसकी मलिका का महल है पर पहरेदारों ने उसकी एक ना सुनी इतने में उसकी आँख खुल गई। आंखें खुलते ही उसकी आँखों के आगे वह तमाम नजारे घुमने लगे जो उसने रात को ख्वाब में देखे थे उसने सोचा ग़ौर किया और उसे यक़ीन हो गया के उसने जो कुछ भी देखा है। वह ख्वाब की सूरत में एक हकीकत थी। जुबैदा के साथ किया गया बोहलोल साहिब का वायदा एक दम सचा था। उसने बे ख़ुदी में जुबैदा को जगाया और कहा मैंने ख्वाब में जो कुछ देखा है उसको लफ्जों में ब्यान नहीं किया जा सकता है मैने वाक्य में जन्नत के महल देखे हैं जिनमें से एक तुम्हारा भी था ज़ुबैदा ने कहा अच्छा अच्छा ठीक है सुबह बात करते हैं मेरे हुजूर।
लेकिन अब बादशाह की आँखों से नींद ग़ायब हो चुकी थी उसने बाकी की सारी रात इसी सोच में गुज़ार दी कि सुबह बोहलोल साहिब मिलेंगे भी कि नहीं अगर वह मिल भी गए तो क्या वह दरिया किनारे महल बना भी रहे होंगे या नहीं
हारून बादशाह बड़ी बेकरारी में सुबह उठा और महल से बाहर झाकने लगा उसने देखा के बोहलोल साहिब रेत पर बैठें है वह फौरन उनके पास पहुंचा और बोला
सुना है। आपने जन्नत के महल बेचने का कारोबार शुरू कर दिया है।
बोहलोल साहिब ने जवाब दिया जी बिल्कुल आप ने ठीक सुना है।
हारून ने कहा क्या कीमत है एक महल कि
बोहलोल साहिब ने जवाब दिया आपकी आधी सलतनत
हारून यह सुन हैरान हो गया और बोला कल जुबैदा को तो आप ने केवल दो दीनारो में दिया था
बोहलोल साहिब ने क़हक़हा लगाया और कहा हारून साहिब आप की मलिका ने तो जन्नत के महलो को बिना देखे सौदा किया था पर आप तो उन सुंदर महलो को देख कर आ रहे हैं।
ऐसे होते हैं अली के नौकर, ऐसे होते हैं अली के नौकर जो मिट्टी से बना देते हैं खुलद के घर
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