26.बोहलोल साहिब और शेख़ जुनैद बग़दादी
शेख़ जुनैद बग़दादी अपने समय के काबिल विद्वान थे लोग उनका बहुत मान सम्मान किया करते थे। एक मरतबा वह बग़दाद की गलियों से अपने मुरीदों के साथ गुजर रहे थे कि अचानक उन्होंने रूक कर मुड़ते हुए कहा मेरे साथियों आज में आप लोगों को किसी खास हस्ती से मिलवाना चाहता हूँ। आप लोग जल्दी जल्दी मेरे पीछे आइए।
सभी मुरीद जल्दी जल्दी उनके पीछे हो लिए।
वो देखो मेरे साथियों अपनी बाजू के सरहाने पर सर रखे वह दरवेश सौ रहा है। बोहलोल साहिब इस क़द्र गहरी नींद में थे के उन्हें शेख़ साहिब और उनके मुरीदों के क़दमों की आवाज भी सुनाई नहीं दी।
शेख़ साहिब ने पास पहुंच कर बड़े अदब से सलाम अर्ज किया।
हज़रत बोहलोल साहिब नाचीज का सलाम क़ुबूल फ़रमाइये।
बोहलोल साहिब ने आंखें खोली और सलाम का जवाब दिया। और बोले जनाब आप कौन हैं।
हुज़ूर मैं जुनैद बग़दादी हूँ।
शेख़ साहिब ने अपना तअर्रूफ़ कराया।
अच्छा तो आप लोगों को रूहानी तालीम देते हैं।
जी कोशीश कर लेता हूँ।
बोहलोल साहिब ने आंखें मलते हुए कहा जनाब आपको ढंग से सोने का तरीका मालूम है जिससे गहरी नींद आए।
शेख साहिब को लगा शायद उन्होंने बोहलोल साहिब की नींद खराब कर दी है इसलिए वह ऐसा सवाल कर रहे हैं बात ना बिगड़े इसलिए शेख साहिब ने कहा जितना क मुझे पता है। मैं आपको बताने की कोशिश कर सकता हूँ।
शेख़ साहिब ने अदब से कहा।
जी बताएँ। बोहलोल साहिब ने ज़मीन पर सीधे बैठते हुए कहा।
शेख़ साहिब भी जमीन पर उनके पास बैठ गये और बोले।
जी मै जब इशा की नमाज़ पढ़कर जरूरी कामों से फारग हो जाता हूँ। तो सोने के कपड़े पहन लेता हूँ और फिर रब का शुक्राना करके सौं जाता हूँ।
कमाल है।
बोहलोल साहिब ने कहा आप को तो हज़रत सोना भी नहीं आता। यह कह बोहलोल साहिब बेज़ारी से उठ ख़ड़े हुए और वहां से चल दिए।
इस पर शेख साहिब के मुरीदों ने उनसे कहा जनाब यह तो हमें कोई पागल लगता है। मेहरबानी करके आप यहां से तशरीफ़ ले चलिये।
शेख़ बग़दादी ने कहा। यह दीवाना दानाई का ख़ज़ाना अपने पास रखता है और मुझे उसी की तालाश है। आओ इसके पीछे पीछे चलें।
इसने बोहलोल साहिब को पीछे से बड़ी ही दर्द भरी आवाज में पुकारा।
जनाब रूकीए मेरी बात तो सुनिए।
आवाज में इतनी कशिश थी की बोहलोल साहिब को रूकना ही पड़ा।
शेख साहिब दौड़कर उनके पास पहुंचे और बोले
हुजूर अगर आप बुरा ना माने तो में आपके साथ थोड़ी देर बात करना चाहता हूँ।
सुब्हानल्लाह क्या बात करनी आती है तुमको
शेख़ साहिब और उनके मुरीद यह बात सुनकर हैरान रह गए इस पर शेख साहिब संभलते हुए बोले जी में ढंग से बात करने की पूरी कोशिश करता हूँ।
बोहलोल साहिब ने वहीं जमीन पर बैठते हुए कहा तो बताओ तुम कैसे गुफ़्तुगू करते हो।
शेख साहिब ने भी पास बैठते हुए मीठी जुबान से कहा जी में केवल खास लोगों से ही जरूरी बात करना पसंद करता हूँ, बे मौक़ा और बहुत ज़्यादा नहीं बोलता, बेतुकी और घटिया बातें नहीं करता, दुनिया वालो को रूहानी बातें बताते वक्त मैं इतना नहीं बोलता के सुनने वाले लोग बेज़ार हो जायें और हां अपनी गुफ़्तुगू में शरा की पाबंदियों का भी ख्याल रखता हूँ। जी बस
अजीब शख़्स हो तुम तुम्हें तो बात करने की भी तमीज नहीं है। तुम क्या मुझ से बात करोगे। यह कह बोहलोल साहिब तेजी से उठ ख़ड़े हुए और वहां से चल दिए।
शेख़ के मुरीदों को बोहलोल साहिब की यह हरकत बहुत ना-गवार गुज़री उन में से एक ग़ुस्से से बोला। पीर व मुर्शिद साहिब यह बोहलोल तो बिल्कुल पागल है। आप इसकी बात का बुरा न मनाए।
शेख़ साहिब ने सर हिलाया और कहा यह दीवाना ज़रूर है। मगर हज़ार दानिशमन्दों पर भारी है। अस्ल हक़ायक़ इसी के पास है। आओ चलो। मुझे इससे बहुत कुछ सीखना है।
मुरीद बिना मन के शेख़ साहिब के पीछे चल दिए।
बोहलोल साहिब अपनी धुन में मस्त चलते जा रहे थे। और वह
एक वीराने में जाकर बैठ गए।
शेख़ साहिब फिर उनके क़रीब पहुँचे और फिर उन्हें सलाम अर्ज किया।
बोहलोल साहिब ने निगाह उठाई और फिर पूछा। तुम कौन हो।
जी मैं शेख़ बग़दादी हूँ जिसे ना तो सोने का सही सलीका मालूम है और ना ही बात करने की तमीज है पर हुजूरु में अपने साथ थोड़ा खाना लाया था सोचा था कि आपके साथ बैठ कर खांऊगा। अगर आप को कोई ऐतराज ना हो तो।
बोहलोल साहिब ने बेनियाज़ी से कहा ना तो तुम्हें सोने का सलीका मालूम और ना ही तुमको बात करने की तमीज है पर
क्या तुम्हें खाना खाना आता है।
शेख़ साहिब ने पूरी कोशीश की इस मर्तबा कोई गुस्ताखी ना हो जाये और वह झिझकते हुए बोले
जी में बिस्मिल्लाह कहकर शुरू करता हूँ।
अपने सामने से खाता हूँ। छोटे लुक़्में लेता हूँ।
अपने साथ खाने में शरीक लोगों की रोटियां और निवाले नहीं गिनता खाना खाते हुए पूरे मन से रब का शुक्र अदा करता हूँ और खाना शुरू करने से पहले और ख़त्म करने के बाद याद से हाथ धोता हूँ।
वाह भई वाह क्या कहने। बोहलोल साहिब ने दामन झटका और फिर उठ कर बोले तुम तो ख़िल्क़त के मुर्शिद बने फ़िरते हो ना, पर ना तो तुम्हें सोना आता है, ना बात करनी आती है। और तो और
तुम्हें तो खाना खाना भी नहीं आता।
शेख़ बग़दादी ने बोहलोल साहिब का दामन पकड़ लिया और मिन्नत करने लगा।
जनाब शेख़ बोहलोल साहिब ख़ुदा के लिये तशरीफ़ रखिये और मुझे वे सब तालिम दीजिए जो मैं नहीं जानता।
बोहलोल साहिब अब मुस्कुराय और बोले शेख़ साहिब आप पहले सब जानने का दावा कर रहे थे। इसलिये मैंने आप से किनारा करना चाहता था।अब जब आपने अपनी ना काबलियत की हामी भर दी है तो अब आपको सिखाने में कोई हर्ज नहीं।
अब गौर से सुनिए जनाब।
सोने के बारे में जो कुछ आपने बयान किया है। वो फ़ुरूआत हैं। अस्ल बात तो यह है के सोते वक़्त दिल में किसी के लिए भी वैर नहीं रखना चाहिए और दिल में ना तो माले दुनिया का लालच और ना ही किसी काम की फिक्र होनी चाहिये बंदे को फिक्रों से आजाद होकर सोना चाहिए।
बोहलोल साहिब ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा
बात करते वक्त सबसे पहले क़ल्ब की पाकीज़गी और नियत का दुरूस्त होना बहुत ज़रूरी है और वह गुफ़्तुगू ख़ुदा की ख़ुशनूदी के लिये होनी चाहिये
अगर गुफ़्तुगू किसी दुनियावी काम की ग़रज़ से चापलूसी की शक्ल में हो या फिर किसी को नीचा दिखाने के मकसद से की गई हो वह सदैव मुसीबत का ही कारण बनती हैं।
बोहलोल साहिब ने आगे कहा
आपने जो खाना खाने के आदाब बयान किए हैं वो सब भी फरूआत हैं। जबकि उसूल यह है की हमें जो कुछ भी खाने को मिले उसे खाने से पहले हमें यह जांच लेना चाहिए कि हम जो खाने वाले हैं वह हलाल और जाएज़ भी है के नहीं। अगर हराम ग़िज़ा को एक हज़ार आदाब के साथ भी खाया जाये तो भी वह तन को कोई फायदा नहीं देती ब्लकि मन को और मैला कर देती है।
सुब्हानल्लाह। आपने ने मेरी आँखें खोल दी है।
शेख़ बग़दादी ने बे साख़्ता उठकर बोहलोल के हाथ का बोसा दिया। और उसे दुआएं देते हुए रूख़सत हुए। उनके जो मुरीद बोहलोल को दीवाना और पागल समझ रहे थे। उन्हें अपने अमल पर ख़जेलत व शर्मिन्दगी हुई उन्होंने नये सिरे से अपने क़ल्ब की रौशनी को देखना शुरू किया।
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