Emblem of Iran and Sikh Khanda

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ईरानी प्रतीक चिह्न और सिखों के खंडे में क्या है अंतर पहली नजर में देखने पर सिखों के धार्मिक झंडे निशान साहिब में बने खंडे के प्रतीक चिह्न और इरान के झंडे में बने निशान-ए-मिली के प्रतीक चिह्न में काफी सम्मानता नजर आती हैं परन्तु इनमें कुछ मूलभूत अन्तर हैं जैसे कि :   Colour : खंडे के प्रतीक चिह्न का आधिकारिक रंग नीला है वहीं ईरानी प्रतीक चिह्न लाल रंग में नज़र आता है। Established Year : खंडे के वर्तमान प्रतीक चिह्न को सिखों के धार्मिक झंडे में अनुमानतन 1920 से 1930 के दरमियान, शामिल किया गया था। वहीं निशान-ए-मिली के प्रतीक चिह्न को ईरान के झंडे में 1980 की ईरानी क्रांति के बाद शामिल किया गया था। Exact Date : इस ईरानी प्रतीक चिह्न को हामिद नादिमी ने डिज़ाइन किया था और इसे आधिकारिक तौर पर 9 मई 1980 को ईरान के पहले सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला खुमैनी जी ने मंजूरी के बाद ईरानी झंडे में शामिल किया गया। वहीं सिखों के झंडे का यह वर्तमान प्रतीक चिह्न विगत वर्षो के कई सुधारों का स्वरूप चिह्न है इसलिए इसके निर्माणकार और निर्माण की तिथि के बारे में सटीक जानकारी दे पाना बहुत जटिल बात है, ...

Behlol dana aur Abdulla mubarak

                   
           27.बोहलोल साहिब और अब्दुल्लाह मुबारक




एक मरतबा अब्दुल्लाह मुबारक के दिल में बोहलोल साहिब से मिलने की तड़फ पैदा हुई वह उनकी तलाश में निकल पड़े एक जगह उनकी नजर पड़ी तो बोहलोल साहिब नंगे सर नंगे पांव अपनी ही मस्ती में लेटे हुए थे।
अब्दुल्लाह मुबारक उनके क़रीब गए और बड़े अदब से सलाम अर्ज किया।
बोहलोल साहिब ने सलाम का जवाब दिया।
अब्दुल्लाह मुबारक बोले ए खुदा के नेक बंदे मुझे कुछ नसीहत कर के में ज़िन्दगी में गुनाहों से कैसे बचूं और मुझे राहे निजात का रास्ता दिखा।
बोहलोल साहिब ने बड़ी ही सादगी से कहा जनाब जो ख़ुद आजिज़ और परेशान हो वो भला दूसरों की क्या मदद कर सकता है मैं तो एक दीवाना हूँ। आप जाकर किसी ऐसे अक़्लमन्द की तलाश करें। जो आपकी फ़रमाइश पूरी कर सकने के काबिल हो।
अब्दुल्लाह मुबारक अपने सीने पर हाथ रखते हुए बोले बोहलोल साहिब इसी लिए तो यह नाचीज़ आपकी ख़िदमत में हाज़िर हुआ है के सच्ची बात जान सके क्योंकि सच कहने की जुर्अत तो केवल दीवानें ही कर सकते हैं।
बोहलोल साहिब ने अब्दुल्लाह मुबारक को कोई जवाब नहीं दिया और ख़ामोश हो गए।
अब्दुल्लाह मुबारक मिन्नत और ख़ुशामद करने लगे। जब उन्होंने बहुत मजबूर किया। तो बोहलोल साहिब बड़ी शिद्दत से बोले।
अब्दुल्लाह मुबारक गुनाहों से बचने की चार शर्ते हैं। अगर आप उन्हें क़ुबूल कर लें तो आपको राहे निजात मिल जाएगी।
चार क्या मैं तो चार हज़ार शर्ते मानने को तैयार हूँ बस आप मुझे राहे निजात दिखा दीजिए। अब्दुल्लाह मुबारक ने बहुत ही बेसबरी से कहा।
तो फिर सुनों
पहली शर्त यह है कि जब भी आपसे जाने अनजाने कोई गुनाह हो जाए या किसी भी तरह ख़ुदा के हुक्म की ना-फ़रमानी हो जाए तो आप उसी वक्त से खुदा के बख्शे
हुए रिज़्क़ को खाना बंद कर दें। क्योंकि जिसका रिज्क खाते हैं उसके साथ नमक हरामी नहीं करते।
अब्दुल्लाह मुबारक सहम गए और बोले आप सच फ़रमाते हैं। दूसरी शर्त बयान कीजिये।
दूसरी शर्त यह है के जब भी आपके मन में कोई भी गुनाह करने का खयाल आए तो उसी वक्त आप ख़ुदा की ज़मीन से निकल जाए क्योंकि यह दुनिया महज़रे ख़ुदा है। बन्दा जिसके मुल्क में रहे। जिसका रिज़्क़ खाये और जिसकी बन्दगी का दावा करे उसे उसी की बनाई हुई मख़लूक़ात के बारे में बुरा नहीं सोचना चाहिए। 
अब्दुल्लाह मुबारक ने कहा उफ़ ख़ुदाया। यह शर्त तो बिल्कुल ही ना-क़ाबिले अमल है। ज़मीन के सिवा बन्दा कहाँ रह सकता है।
बोहलोल साहिब बोले फिर गुनाह करने के बारे में भी बिल्कुल मत सोचना क्योंकि वैसे भी खुदा ने इंसान को को अरशफूल मख़लूक़ात होने का मान दिया है।
अब्दुल्लाह नादिम हुआ। बोहलोल बेशक आपने सच फ़रमाया। अब तीसरी शर्त भी बयान कीजिये।
बोहलोल साहिब बोले तीसरी शर्त यह है के जब भी आप कोई गुनाह करने का इरादा करें तो किसी ऐसी जगह जाकर गुनाह करें जहाँ ख़ुदा आपको न देख सके।
अब्दुल्लाह मुबारक बोले ख़ुदा तो हाज़िर व नाज़िर है वह हर जगह मौजूद है। यह कैसे मुनकिन है।
तो फिर गुनाह करते वक्त यह कभी मत सोचना के कोई मुझको देख नहीं रहा खुदा आलिमुल ग़ैब है। वह सब कुछ जानता और देखता है। ऐसी कोई जगह नहीं जो उससे पोशीदा और ओझल है।
गुनाहगारों को यह ख़याल नहीं करना चाहिए के अल्लाह हर उस अमल से ग़ाफ़िल है। जो वह करते हैं। कयामत वाले दिन सबका हिसाब होगा।
अब्दुल्लाह ने पशेमानी से कहा। बोहलोल मैं ला-जवाब हूँ। अब आप अपनी चौथी शर्त बयान करें।
बोहलोल साहिब बोले। चौथी शर्त यह है के जिस वक़्त मौत का फरिश्ता आपकी रूह कब्ज करने आए तो आप उस वक्त उस से कहना। ऐ मौत के फरिश्ते ज़रा तू थोड़ी देर ठहर मेरे कुछ नेक काम जरा से अधूरे रह गए हैं में उन्हें पूरा कर लूं और अपने अज़ीज़ो से रूख़सत ले लूँ। तो फिर तूं मेरी रूह क़ब्ज़ कर लेना।
अब्दुल्लाह मुबारक बोले मौत का फरिश्ता कब किसी को मोहलत देता है
तो फिर ऐ दानिशमन्द इस दीवाने की बात सुन। जब तू जानता है के मौत का फरिश्ता किसी को एक साँस की भी मोहलत नहीं देता तो जो नेक काम और अमले अभी पूरे हो सकते हैं उन्हें अभी पूरा कर ले। जो वक़्त हाथ में है वही ग़नीमत है। हमें तो अगले पल की भी खबर नहीं है कि हमारे साथ क्या होने वाला है।
अब्दुल्लाह मुबारक का सर झुकता चला गया और उसकी ज़बान गुंग हो गयी।
बोहलोल साहिब ने कहा। अब्दुल्लाह मुबारक यही राहे निजात का रास्ता है। इस दुनिया में ही अपना हिसाब किताब साफ़ रखो तांकि कल जब रोज़े महशर तुमसे पूछ-ताछ हो तो तुम्हारे नेक काम तुम्हारी गवाही दे सकें।
बोहलोल साहिब ने अपनी गुदड़ी उठाई और वहां से यह कहते हुए चल पड़े।
बन्दे को लाज़िम है के यदि वो बंदगी का दावा रखता है और ख़ुद को ख़ुदा का बन्दा कहता है तो वह जो कुछ भी कहे सुने ख़ुदा के हुक्म में रहकर कहे सुने। जो कुछ भी करे ख़ुदा के हुक्म में रहकर करे।
अब्दुल्लाह ने झुका हुआ सर उठाया और बोहलोल साहिब को जाते हुए देखने लगे और जोर जोर से रोते हुए चिल्लाने लगे और पागल लोग तुझे दीवाना कहते हैं तूं तो दानाओ का भी दाना है रे


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